Tuesday 7 April 2020

सेवड राजपुरोहित कैसरीसिंग जी अखेराजोत

श्री गणेशाय नम : श्री नागणेचीं माता नम : 
श्री बीसभूजा माता नम : श्री खेतेश्वर नम : 
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सेवड राजपुरोहित कैसरीसिंग जी अखेराजोत 
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मित्रो मै महेन्द्रसिंग मूलराजोत , कैसरीसिंग जी का पुरा इतिहास नहीं लिख सकता एक ही पोस्ट मे क्युकी कैसरीसिंग जी के इतिहास की एक किताब लिखी हुई है , किताब का नाम कैसरीसिंग जी का जस प्रकाश है , मैने कुछ अलग तरीके से लिखने की सोची है कम शब्दो मे लिखने के बाद भी सब जान जावे , 
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परिचय :- कैसरीसिंग जी तिंवरी के ठाकुर अखेराज जी के छोटे पुत्र थे।
कैसरीसिंग जी के पुर्वज :- तिंवरी के महान शुरवीरो के वंशज है कैसरीसिंग जी आप सातवें वंशज है :- मूलराज जी के प्रतापसिंग जी के ठाकुर कल्यानसिंग जी के रामसिंग जी के मनोहर दास जी के दलपतसिंग जी के अखेराज जी के कैसरीसिंग होते है ।

भाई : -  तिंवरी ठाकुर सुरजमल जी, खीचन के जागीरदार महांसिंग जी ओर जाटियावास के जागीरदार मारवाड् के भीम जयसिंग जी 

वंशज :- आप के दौ पुत्र थे , प्रतापसिंग जी खेडापा मे रहे ओर अनोपसिंग जी धुंधीय़ाडी मे रहे ।


उपाधि /खिताब :- अर्जून के समान , आप बहुत निशाने बाज थे इसलिए महाराजा ने आपको अर्जून के खिताब से सम्मानित किया 

उपनाम :- आप अहमदाबाद की लड़ाई मे एक पैर मे ज्यादा चौट लगने की वजह से लंगडे चलते थे इसलिए आपको अहमदाबाद मे आज भी लंगडे बाबा य़ा खोडीय़ा बाबा के नाम से जानते है 

प्रमुख कार्य : - अहमदाबाद के नबाव ज़िसकी वजह से युद्ध हुआ उसका सिर काट कर युद्ध को ज़ितने की वजह , कैसरीसिंग की वजह से युद्ध जीते थे 

प्रमुख पद :- अहमदाबाद के युद्ध मे दुसरे मोर्चे के सेन्य प्रमुख आपको महाराजा अभयसिंग जी ने बनाया ओर हरावल पंक्ती /सबसे आगे लड़ने का अधिकार दिया था

खास बात :- आपने युद्ध मे खुद को बचाने के लिये कोई लौह की वस्तु य़ा ढ़ाल का उपयोग नहीं किया 

गर्व की बात :- कैसरीसिंगजी का सिर कट जाने के बाद भी उनका धड् लड़ता रहा ओर सिर को उनका अरबी  घोडा मुंह मे पकड कर महाराजा के पास लेकर गया था
आज के दिन विक्रम संवत विजयदसमी 1787 मे 

कैसरीसिंगजी का संदेश :- भाई'- भाई आपस मे लड़कर ना मरे ओर अपनी ताकत कमजोर ना करे ज़िसका फायदा दुसमन ना उठाये ओर उनका होसला ना बढ़े , यही संदेश कैसरीसिंग जी के साथ हुई देशनिकाला 
की घटना से पता चलता है क्युकी  महाराजा अभयसिंग जी अपने भाई बख्तावरसिंग नागौर को मारने के लिये बारूद से उड़ाने की गुप्त साज़िश रची ज़िसका पता कैसरीसिंगजी को लगने के बाद  गांगानी से नागौर ईमंरतिया बेरा जाकर बख्तावरसिंग को हकिकत
बताई ओर् रातोरात वापस आये , सुबह महाराजा को इस बात का पता लगा तो कैसरीसिंगजी को बुलाया ओर तलवार गर्दन पर रखी ओर कहा मै आपके पूर्वजो एहसानो से दबा हूँ इसलिए सिर सलामत रखता हूँ ओर कोई होता तो अभी तक सिर काट दिया होता ओर कहा आपको मै देशनिकाला देता हूँ आप अपना मुंह नहीं दिखाना मुझे दूबारा, फिर कैसरीसिंगजी जी ने कहा बख्तावरसिंग मेरे भरोसे पर आपसे समजोता करने आ रहा था मै उसके साथ धोका केसे करू यह राजपुरोहित धर्म के खिलाफ है आप अपने ही भाई की हत्या करोगे मेरे सामने तो हमारी जबान की क्या कींमत रहती ओर आपकी भी क्या इज्जत रहती भाई की हत्या के बाद ओर् कैसरीसिंगजी मारवाड् की धरती त्याग देते है ओर् नागौर बख्तावरसिंग के पास जाते है यह बात 1785 -86 की है 

प्रण संकल्प :- कैसरीसिंगजी को युद्ध मे सामिल होने के लिये पत्र भेजा गया महाराजा अभयसिंग द्वारा भेजा गया उसके बाद मारवाड् की भुमी पर पैर नहीं दिया युद्ध मे जाते समय मारवाड् की सीमा के किनारे 
होते हुये अहमदाबाद गये लेकीन मुंह नहीं दिखाया जीते जी मरने के बाद घोडा सिर लेकर गया तभी मुंह देखा महाराजा ने 
Ye sampurn Jankari Mujhe Mahendra Singh Rajpurohit dwara bheji gai

आपका धन्यवाद पूरी पोस्ट पढने के लिये

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