Tuesday 21 April 2020

राजस्थानी भाषा के महान साहित्यकार स्व श्री नृसिंह राजपुरोहित जीवन परिचय

प्रिय मित्रों ,,
राजपुरोहित समाज की साहित्य संगीत और खेल से जुड़ी हस्तियों के परिचय एवम उपलब्धियों की श्रृंखला में हम आज लेकर आये है राजस्थानी भाषा के महान साहित्यकार स्वर्गीय श्री नृसिंह जी राजपुरोहित जी को , जो देश की आजादी से पहले से भी साहित्य साधना में राजपुरोहित समाज का नाम रोशन कर रहे थे।   
18 अप्रैल 1924 को जन्मे नृसिंह जी मारवाड़ परगना के बाड़मेर जिले के खांडप गांव के निवासी थे ।
इनके पिताजी श्री रतनसिंह जी समाज के जाने माने व्यक्तित्व थे।

शुरुआती शिक्षा खांडप गांव में ही प्राप्त करने के बाद आपने कुछ वर्ष जैन गुरुकुल में अध्ययन लेने के पश्चात बाड़मेर के सरकारी विद्यालय में शिक्षा पूर्ण की । घर मे धार्मिक वातावरण के कारण आपकी बचपन  से ही साहित्य में रुचि रही ।
नृसिंह जी के माता-पिता उनसे कथाएं पढ़वाकर सुनते थे। 
विद्यालय के पुस्तकालय से हिंदी साहित्य के ख्यातनाम रचनाकार मुंशी प्रेमचंद और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की की रचनाएं पढ़कर इनके मन मे साहित्य के प्रति अति उत्साह बना । इसी लगाव के चलते आपने हिंदी साहित्य में एम. ए. की डिग्री प्राप्त की ।

आप हिंदी साहित्य के विद्यार्थी होने के कारण चाहते तो हिंदी साहित्य में  ख्याति प्राप्त कर सकते थे पर उन्होंने मायड़ भाषा को चुना , उनका कहना था कि इस मिट्टी के सुख दुख को लिखने का आनंद जो इसी की जुबान में होगा वो हिंदी में नही होगा । 
1945 में आपने "भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थानी कवियों का योगदान " इस विषय पर शोध पूर्ण करके डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की ।  आजादी के बाद राजस्थानी साहित्य जगत में श्री नृसिंह जी का नाम मान सम्मान से लिया जाने लगा।  डॉ नृसिंह जी बताते थे कि साहित्य में दूसरी विधाओं को छोड़ कहानी लेखन के प्रति रुचि का कारण ये था कि बचपन में मैं घर मे 'सुखसागर' और 'प्रेमसागर ' की कृष्ण कथाएं सुनाया करता था ।

1945 में आपकी पहली कहानी "पुन्न रो काम" प्रकाशित हुई और इसके बाद आप लगातार कहानी लेखन करते रहे और आम पाठकों के साथ-साथ साहित्यकारों द्वारा भी आपको मान-सम्मान मिलता रहा । 1961 में आपका पहला कहानी संग्रह "रातवासौ" प्रकाशित हुआ। इस कहानी संग्रह में  कलम री मार , भीमजी ठाकर , प्रेत लीला , उत्तर भीखा म्हारी बारी , माँ रो ओरणो और रातवासौ कहानियां छपी । 
1969 में डॉ. नृसिंह जी के दो कहानी संग्रह "अमर चुनड़ी' और मऊ चाली माळवे ' प्रकाशित हुए । 
1982 में आपका चौथा कहानी संग्रह "प्रभातियो तारो" और पांचवां कहानी संग्रह "अधुरो सुपनो"1992 में छपा ।  
प्रभातियो तारो कहानी संग्रह में पंद्रह कहानियां तथा अधुरो सुपनो कहानी संग्रह में सत्रह कहानियां छपी। 

आपने पन्द्रह वर्ष तक माणक पत्रिका का सम्पादन भी किया। 
टालस्टाय री टाळवी कथावां , संस्कृति रा सुर , मिनखपणां रो मोल , हस्या हरि मिले , धूड़ में मंडिया पगलिया और कथा सरिता का आपने मायड़ भाषा मे अनुवाद किया। 

पुरस्कार-
~राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार 1969 (अमर चुनड़ी ) 
~ सेठ हजारीमल बांठिया पुरस्कार 1978 
~ प्रभातियो तारो के लिए "पृथ्वीराज राठौड़ स्मृति अकादमी पुरस्कार 1979 
~ सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार 1981 
~ श्री महेंद्र जाजोदिया पुरस्कार 
~श्री विष्णु हरि डालमिया पुरस्कार ।।
~ श्री रामेश्वर टाटिया पुरस्कार  
महाराणा मेवाड़ साहित्य पुरस्कार , 
केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च राजस्थानी भाषा- साहित्य पुरस्कार , 
द्वारकाधाम ट्रस्ट जयपुर द्वारा साहित्य सेवा सम्मान , 
1993-94 में राजस्थानी भाषा संस्कृति एवं साहित्य अकादमी द्वारा  सूर्यमल्ल मिश्रण साहित्य पुरस्कार। 
श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में राज्य स्तरीय एवम राष्ट्र स्तरीय पुरस्कार । 
श्री विष्णु हरि  डालमिया  पुरस्कार ,
राजस्थान रत्नाकर पुरस्कार नई दिल्ली ।

श्री नृसिंह जी की कहानियों पर बंगाली, तेलगु एवम तमिल भाषा मे कई टेलीफिल्म भी बनी ।

कर्मयोगी डॉ. श्री नरसिंह जी राजपुरोहित जीवनभर मायड़ भाषा की सेवा करते हुए तथा माँ सरस्वती की साधना करते हुए अचानक 2005 में हम सब को छोड़कर स्वर्ग सिधार गए , 
लेकिन साहित्य जगत में राजपुरोहित समाज , मालाणी क्षेत्र एवम सम्पूर्ण राजस्थान का नाम चमकाकर गए। 
आपकी साहित्य स्मृतियां को हम हमेशा याद रखेंगे। 

फोटो एवम जानकारी Narsingh rajpurohit वेबसाइट से साभार। 


उनके जन्मदिवस पर समाज महारथी श्री मनफूल सिंह जी के विचार जो कि हमें व्हाट्सएप से उन्होंने भेजे हैं 
श्री मान मनफूल_सिंह, आड़सर ने कहा की 18 अप्रैल को जन्मदिवस है ब्रह्मलीन, महामना श्री नरसिंह जी राजपुरोहित खंडप मूर्धन्य विद्वान एवं साहित्यकार को सत सत नमन कोटिशः  प्रणाम ।

 आपके पावन जन्मदिवस पर मधुर स्मृति उभर आई । लगभग 40 वर्ष पूर्व सरवड़ी गांव में राजपुरोहित समाज का एक दिवसीय सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में मुझे नरसिंह जी खण्डप का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस सम्मेलन में  परम पूजनीय श्री खेताराम जी महाराज, श्री आत्मानंद जी महाराज,  श्री सेवानंद जी महाराज का सानिध्य  रहाl   सम्मेलन का उद्देश्य था कि संत महापुरुषों की सनिधि  में राजपुरोहित समाज कैसे प्रगतिशील बने, समाज में व्याप्त कुरीतियों का  निवारण हो, बालक बालिकाओं में  शिक्षा प्रोत्साहित हो,  परंपरागत खेती बाड़ी गौ सेवा के अलावा युवा वर्ग गांव से बाहर निकले देश प्रदेश में नौकरी व्यापार धंधा करें, समाज की समृद्धि बढ़ाएं पूज्य खेताराम जी महाराज ने फरमाया कि आप सब प्रेम रखो, माता पिता की सेवा करो, एक-दूसरे के सहयोगी रहकर सीधे मार्ग पर चलो l पूज्य आत्मानंद जी महाराज ने शिक्षा पर बल दिया समाज के बालकों के लिए छात्रावासों का निर्माण करो, आपस में प्रेम भाव रखो l  श्री सेवानन्दजी महाराज ने कहा साधु संतों के प्रति आदर का भाव रखो समाज का पुण्य बढ़ाओ l दया धर्म का मूल हैl
संघे शक्ति कलियुगे l

 इस प्रकार तीनों महापुरुषों ने 30 गाँवो  से आए हुए इस देव सभा को आशीर्वचन  वचन दिया l
 इस सभा में सुशिक्षित गोलोक वासी श्री नरसिंह जी खंडप ने बहुत ही प्रभावशाली वक्तव्य से  सभा को प्रभावित किया l मैंने भी गुरु महाराज की आज्ञा से अपना उद्बोधन दिया l  'हम कहां थे, कहां हैं और कहां  हमें होना चाहिए' l गुरु महाराज के श्री मुख से निकला ' वाह 'हक री वातां कीनी, पण केवे वो  करनो पड़े l
 इस भव्य सभा को श्री अभय सिंह जी कालूडी,  श्री भोपाल सिंह जी बरना ,  श्री भोपालसिंह जी सिलोर और श्रीकान सिंह जी सरवड़ी, श्री जसवंत सिंहजी ढाबर व  अन्य  वक्ताओं ने संबोधित किया । इस सभा की अध्यक्षता श्री प्रताप सिंह जी अराबा ने की व कार्यक्रम का संचालन अभय सिंह जी कालूडी ने किया ।

मित्रों Rajpurohit samaj india द्वारा प्रयत्नशील ये पहल आपको कैसी लगी हमे जरूर सुझाव दीजियेगा। 
अगले शनिवार हम फिर समाज की एक प्रतिभा से रूबरू करवाएंगे ।

जय श्री दाता री सा ।

आपका स्नेही - नरपतसिंह राजपुरोहित ह्रदय


 एक विशेष सूचना
 आप सभी भी अपना जीवन परिचय इस पोर्टल पर भेज सकते हैं हमारा व्हाट्सएप नंबर है 92864 64911
आपका अपना सवाई सिंह राजपुरोहित
मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन आरोग्यश्री समिति

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