जीवन परिचय के इस श्रंखला में समाज के ऐसे महान पुरुष का जीवन परिचय हम लेकर आए हैं जिन्हें आप सभी भली-भांति जानते हैं जी हां हम बात कर रहे हैं शहीद राजगुरु की आइए जानते हैं उनका संक्षिप्त परिचय आज उनके जन्मदिवस पर विशेष .....
राजगरू जी की जन्म जयंती पर शत्-शत् नमन्
आजादी रो एक दीवानों शिवराम हरि राजगुरु जपुरोहित जिनका पैतृक गाँव अजारी जिला सिरोही_है
नाम= शिवराम हरि राजगुरु राजपुरोहित
उप नाम=रघुनाथ, एम.महाराष्ट्र
जन्म स्थान=पुणे, महाराष्ट्र, ब्रिटिश भारत
जन्म तिथि =24 अगस्त, 1908
मृत्यु तिथि= 23 मार्च, 1931
मृत्यु मात्र= 22 वर्ष
मृत्यु स्थान =लाहौर, ब्रिटिश भारत, (अब पंजाब, पाकिस्तान में)
माता का नाम=पार्वती बाई
पिता का नाम=हरि नारायण
कुल भाई बहन दिनकर (भाई) और चन्द्रभागा, वारिणी और गोदावरी (बहनें)
जाति (Caste) Brahman Rajpurohit
शहीद भगत सिंह का नाम कभी अकेले नहीं लिया जाता, उनके साथ राजगुरु और सुखदेव का नाम भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। जी हां शिवराम हरि राजगुरु राजपुरोहित जो महाराष्ट्र के खेड़ा ग्राम में रहने वाले थे। इनका पैतृक गाँव अजारी है जिन्होंने भारत माता को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने वाले अंग्रेजों के एक पुलिस अधिकारी को मार गिराया था। और भगत सिंह व सुखदेव के साथ ही उन्हें 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी।
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आप के बलिदान को समाज कभी नहीं भूल पाएगा.... आप को शत-शत नमन और सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता है सुगना फाउंडेशन राजपूत समाज इंडिया टीम
इस ब्लॉग के माध्यम से मैं समाज से जुड़ी प्रतिभाओं को आप सबके बीच लाने का एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूं और आज इसी कड़ी में मैं आपके बीच लेकर आया हूं बाल कलाकार और मंच संचालक जय सिंह राजपुरोहित का जीवन परिचय के साथ हाजिर हुआ हूं आपका सवाई सिंह राजपुरोहित मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन
संक्षिप्त परिचय
नाम : जयसिंह राजपुरोहित खाराबेरा
पिता का नाम : श्री भाकरसिंह जी राजपुरोहित
माता का नाम : श्रीमती दरियाव देवी
जन्म दिन :01/03/1997
गोत्र : सेवड़
शिक्षा:- 12 वी
गाव का नाम : खाराबेरा पुरोहितान (जिला जोधपुर)
एक सामान्य परिवार का नवयुवक जिसने अपनी राह खुद बनाई और चल पड़ा अपने हुनर को लेकर जहाँ हजारों की संख्या उनके आगे थी पर इनका मानना था की
" मंजिले उन्हें नहीं मिलती जिनके ख्वाब बड़े होते है
बल्कि मंजिले उन्हें मिलती हैं जो अपनी जिद्द पर अड़े रहते है"
और आपने यह साबित करके भी दिखाया।
कवि जयसिंह खाराबेरा के परिवार में पिता जी का देहांत हो चुका है माताजी और चार भाई के साथ चार बहने है खुशहाल परिवार है बचपन से ही इनको संगीत से प्रेम था और समाज में इनके पिताजी की एक अच्छी पहचान थी और उसी के साथ इनके पिताजी बहुत अच्छे चित्रकार भी थे।
कवि जयसिंह खाराबेरा को बचपन से ही मंचो पर बोलने का शोक का जब यह दस साल के थे जब से इन्होने मंचो पर बोलना शुरू कर दिया था स्कूल समय से ही कवि जयसिंह अपनी छोटी छोटी रचनाएँ सांस्कृतिक कार्यक्रमो मे सुनाया करते थे और इनके परिवार ने भी इनका साथ दिया।
शिक्षा के लिए गाव से बाहर पाली जाना पड़ा इनके अंदर की लगन हमेशा मंच की ओर ले जाने का प्रयास कर रही थी फिर 2014 मे पाली के कवि श्री सुखसिंह जी राजपुरोहित आउवा और कवि दलपतसिंह जी रुपावास का इनको आशीर्वाद मिला और इन्हें वहीं पर 1-2 कार्यकर्मो में जाने का मौका मिला ।
"मिलेगी परिंदो को मंजिल
यह उनके पर बोलते हैं ।
कुछ लोग रहते हैं शांत पर
उनके हुनर बोलते है ।।"
उसके बाद उन्होंने निश्चय कर लिया की मुझे एक अच्छा एंकर ही नहीं एक कामयाब लेखक भी बनना है उसके बाद कवि जयसिंह की पढ़ाई 12 वी पूरी हो जाने के बाद वो पुणे में अपने बड़े भाई महेशसिंह जी के साथ नौकरी करने लग गए कुछ समय तक काम की ज़िम्मेदारी के कारण उनकी संगीत से दुरी बढ़ गई फिर बड़े भाई बलवंतसिंह से इन्होने अपना सपना पूरा करने की बात कही ओर बलवंतसिंह इन्होंने नहीं रोका मां शारदा मां सरस्वती का आशिर्वाद से उन्हें पुनः रास्ता एक गौ रक्षक के रूप में मिला और कवि जयसिंह सोशल मीडिया पर अपने ओजस्वी भाषण और कविताओ को लेकर चर्चित होने लगे उसी दौरान उनकी मुलाकात सुरेंद्रसिंह राजपुरोहित उर्फ़ SS Tiger से हुई और कवि जयसिंह ने उनके जीवन पर आधारित कविता लिखी और 18 दिसंबर 2018 को SS Tiger के जन्मदिन के मौके पर बंगलौर मन्च पर वो कविता 10,000 लोगो के बीच सुनाई और वहा उन्होंने अपने नाम के झंडे गाड़ दिए वहीं पर उनकी मुलाकात गजेंद्रनिवास जी राव , महेंद्रसिंह जी राठौड़ और नूतन जी गहलोत से हुई और वहा पर राजपुरोहित समाज के एक उभरते कलाकार दिलीपसिंह जी खारवा मौजूद थे और उन्होंने कवि जयसिंह को भजन लिखने की राय दी। उन्होंने माँ शारदे के दिए आशिर्वाद पर भरोसा था फिर उन्होंने पहला भजन शितला माता के लिखा और वो हिट हुए फिर भजन गायक हैमेन्द्रसिंह राजपुरोहित का इनको साथ मिला और जयसिंह खाराबेरा को पहली बार मंचसंचालन का मौका मिला फिर हैमेन्द्रसिंह राजपुरोहित ने उनको हैदराबाद सिंगर रविंद्रसिंह कोसाना के पास भेजा और वहा उनको राजस्थान के सभी फनकारों के सात काम करने का सौभाग्य मिला सबका बहुत प्रेम मिला और बड़े फनकारों (कलाकारों) के साथ प्यार और सहयोग निरंतर मिलता जा रहा है।
कवि जयसिंह हमे बताया हैं की यह सब
सिंगर रविंद्रसिंह, सिंगर भरतसिंह रुपावास, सिंगर गौतमसिंह आउवा, सिंगर हैमेन्द्रसिंह और सिंगर दिलीपसिंह सभी की कृपा और आशीर्वाद से ही आज मैं इस मुकाम पर पहुंचा हूं ओर सबसे बड़ी खुशी की बात और मेरे सौभाग्य यह है कि मारवाड़ जन्क्शन में हुए प्रथम प्रवासी महासम्मेलन में भी इन्होने अपने प्रस्तुति दी और वहा पर गुरुदेव श्री 1008 श्री बालकदास जी महाराज का आशिर्वाद भी मिला।
आज कवि जयसिंह राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष में मंचसंचालन का कार्य करते है जैसे बैंगलोर, पुने, मुम्बई, सूरत, चेनाई, तिरुपति, हैदराबाद आदि शहरों में अपने आवाज के दम पर सफल आयोजन किए हैं।
दुनिया से बाजी जीतकर मशहूर हो गये
इतना मुस्कुराये कि दुख सब दूर हो गये
हम काँच के थे दुनिया ने हमको फेंक दिया था
श्री खेतेश्वर दाता के चरणों में आये तो कोहिनूर हो गये।
बाल कलाकार और मंच संचालक कवि जयसिंह राजपुरोहित खाराबेरा के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं आप इसी तरह परिवार और समाज का नाम रोशन करें ऐसी मंगल कामना टीम सुगना फाउंडेशन और राजपुरोहित समाज इंडिया करती है।
कौन कहता है कि मेरा ईश्वर प्यार नहीं करता
प्यार तो करता है मगर प्यार का इजहार नहीं करता
मैनें देखा है दर पे माँगनें वालों को
मेरा ईश्वर देने से इनकार नहीं करता।
विशेष सूचना
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आज जीवन परिचय एक ऐसे महान संत और तपस्वी का है जिन्होंने अपना पूरा जीवन शिक्षा को समर्पित किया आज भारतवर्ष में गुरु महाराज जी के नाम से कई शिक्षण संस्थाएं और छात्रावास बनाए हैं ऐसे ही पूज्य संत का हम जीवन परिचय प्रस्तुत करने जा रहे हैं किसी प्रकार की कोई त्रुटि हो तो आप हमें जरूर सूचित करें हम उसमें सुधार करेंगे ...सवाई सिंह राजपुरोहित मीडिया प्रभारी सुगना फाउण्डेशन
ॐ गुरु ग्रंथन का सार है, गुरु है प्रभु का नाम,
गुरु अध्यात्म की ज्योति है, गुरु हैं चारों धाम...
श्री 1008श्री आत्मानंद सरस्वतीजी महाराज का जीवन परिचय
पूरा नाम : - सात श्री 1008 स्वामी आत्मानन्द सरस्वती जी महाराज
जन्म का नाम : - अचल सिंह
जन्म तारीख 3 सितंबर , 1924 ( विक्रम सम्वत सुक्लापक्सा भाद्रपद चतुर्थी १९८१ - बुधवार ]
पिता जी - श्री देवीसिंह राजपुरोहित गुन्देचा ( गुन्देशा )
माता का नाम : - श्रीमती मंगु देवी
जन्म स्थान : - बारवा जाब तहसील : - बाली जिला - पाली ( राजस्थान )
गुरु का नाम : - श्री जगद्गुरु शंकराचार्य के शिष्य श्री 1008 श्री अनंत महाराज ज्योतिपीठ शांतानंद सरस्वती जी हैं
श्री 1008 श्री अनंत महाराज ज्योतिपीठ शांतानंद संत श्री 1008 श्री शिक्षा सारथि स्वामी आत्मानन्द सरस्वती जी महाराज ने अपने यौवन काल शाह एक ऊंचे और तपस्वी का जीवन व्यतीत किया है । नियम और व्रतों का पालन किस कहा और कड़ाई से वैसा हमने आज तक दूसरे किसी व्यक्ति को नहीं करते देखा ! जिन लोगों ने संत श्री को निकट से देखा है । करता इस बात की सत्यता से भलीभांति परिचित होंगे ! संत श्री बहु प्रतिभा के धनी हैं । इनका जीवन प्रारम्भ से ही कर्ममय रहा है और बालकों की शिक्षा की तरह ही कन्याओं की शिक्षा पर भी बहुत बल दिया है । महान कर्मयोगी , सरस्वती जो राजपुरोहित समाज में शिक्षा क्षेत्र असीम योगदान . " अध्यात्मिक महापुरुष " घोर तपस्वी , संत श्री दतारा सुंदर वक्ताओं ने शिक्षा के क्षेत्र के विकास में सामाजिक हॉस्टल का गठन और , आपको को शिक्षा विद के नाम से जाने जाते है क्योकि आपने हॉस्टल राजपुरोहित जालोर , पाली मारवाड़ , फालना , रानीवाडा , कलंदरी , जोधपुर ( तीसरा विस्तार ) , सिरोही , भीनमाल और आहोरे और राजपुरोहित समाज के भवन भवस - सांचौर , सिरोही , कलदरी , पाली , निम्बेश्वर आदि समाज के कई जगह आज हॉस्टल पर संत श्री के नाम से भी प्रमुख स्थानों में विकसित कर रहे हैं . पुरानी हील और महादेव मंदिर का भी निर्माण किया है आपने कई गौशाला के विकसित किया हैं संत श्री 1008 श्री आत्मानन्द जी महाराज की समाधि जालौर में है🙏🏻🚩🪔🌹👏🏻यह बात है। उस समय की जब देश अंग्रेजो की गुलामी से स्वतंत्रत हो चुका था।
भारत स्वावलंबी बनने की शुरुआती चरण में था। ऐसे समय मे भारत का एक स्वर्णीम वर्ग राजपुरोहित जिसकी गणना समस्त मानव जाति के सबसे उच्चतम वर्ग में की जाती हैं। भूतकाल में हमारे पुर्वज इस समस्त सृष्टि के मार्ग दर्शक हुआ करते थे। ऐसे तपस्वीयों की संतान आज शिक्षा की कमी के कारण किसी का नेतृत्व करने की बजाय परदेशों मे मजदूरी करते हुए दिखाई दे रहे थे।
जो कार्य बैल के द्वारा किया जाना चाहिए था। वो कार्य अशिक्षित होने के कारण हमारे बंधु मजबूरी वश कर रहे थे।
जब समाज मे शिक्षा रूपी दीपक का प्रकाश कही दुर दुर तक नजर नहीं आ रहा था। चारों तरफ धोर अँधेरा ही अँधेरा दिखाई दे रहा था। तब ऐसे समय में राजपुरोहित समाज मे एक ऐसी दिव्य और तेजस्वी आत्मा युवा अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी। जिसने हमारे समाज से अशिक्षा रूपी अंधकार को दूर करने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
ऐसी महान आत्मा ने अपने शरूआती समय.मे मुम्बई की जुहू चौपाटी पर हमारे बंधुओं को शिक्षित करने का प्रथम प्रयास हाथ मे लिया।
इतने पर भी जब उन्हे आत्म संतुष्टि नहीं हुई। तो उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज को शिक्षित करने के लिए समर्पित करने का मन ही मन संकल्प लिया । और सर्वप्रथम,1960 में कालंद्री में छात्रावास के निर्माण से इसका श्री गणेश किया।
देखते ही देखते जालोर,सिरोही,फालना,जोधपुर,पाली,आबुरोड सभी जगहों पर छात्रावासों का निर्माण करवाया। और समाज को शिक्षित करने के लिए अहम भूमिका निभाई।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतमं | भावातीतं त्रिगुणरहित सद्गुरुं तं नमामि || समस्त राजपुरोहित समाज में शिक्षा के जागरण के लिए अपना सर्वोच्च अर्पित करने वाले परम् पूज्य सदगुरुदेव ब्रह्मलीन् शिक्षा सारथी स्वरुप गुरुदेव श्री श्री 1008 श्री आत्मानंद जी सरस्वती जी की 15 वी पुण्यतिथि पर उनको शत-शत नमन वंदन
सुगना फाउण्डेशन परिवार और राजपुरोहित समाज इंडिया टीम
🚩🪔🌹👏🏻........
ॐ गुरु ग्रंथन का सार है, गुरु है प्रभु का नाम,
गुरु अध्यात्म की ज्योति है, गुरु हैं चारों धाम....
श्री गुरूदेव देवानंद जी सरस्वती महाराज के आदेश से हैदराबाद में एक सस्था का गढन किया उसका नाम श्री आत्मान्दजी शिक्षा सेवा समिति है जिसका कार्यक्रम अच्छी तरह चलता है
हर साल उनके जन्म दिवस के मौके पर और पुण्यतिथि पर हैदराबाद में कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है इस बार लॉक डाउन आने की वजह से कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया।
गुरू जी की महानता भाग 1
एक समय की बात है एक किसी भक्त भाविक ने कहा महाराज श्री आपके लिए एक में बड़ी गाड़ी ला कर के दे देता हूं जिसमे आप और सभी भक्तों भावीक जन बैठकर के कहीं पर जा सकते हो तब महाराज श्री ने प्रेम से मुस्कुराते हुए बोले भाई तेरे पास में कुल कितनी राशि है जो तू गाड़ी लाना चाहता है तब भाई बोला अमुक इतने इतने राशि है तब गुरुदेव श्री ने कहा इस राशि को आप यहीं पर इस आश्रम में समर्पित कर दो मैं खुद गाड़ी लाऊंगा तब भाई बोला महाराज श्री आप केसी गाड़ी लाओगे तब महाराज श्री ने कहा भाई मैं ऐसी गाड़ी लाऊंगा जिसने अपनी पूरी समाज बैठेगी और कुछ समय के अंतराल के बाद महाराज श्री ने जालोर रेलवे स्टेशन के पास 6,,7, बिगा जमीन खरीदी और उसमें हॉस्टल बनवाया समाज के लिए और उस का उद्घाटन हुआ तब उस व्यक्ति को बुलवाया भाई यह समाज की बड़ी गाड़ी है उसमें दूर-दूर से बहुत भक्त भावीक जन पधारे हुए थे और लोग बैठ थे तभी महाराज श्री उस भाई को कहां देख भाई हमने यह गाड़ी लाई है जिसमें प्रकाश रूपी शिक्षा के इस प्रकाश में पुरा समाज बैठेगा इतना हमारे लिए चिंतन करने वाले उन महान् पुरुष कों छत छत नमन है ऐसी आत्मा हम सब लोगों के बिस में यदा कदा ही अवतरित होती हैं ऐसे तो यह भारत भूमि ऋषि मुनियों का ही देश राह और इसी नाम से जाना भी जाता है पर भाई हम कितने बहुत खुश भाग्यशाली हैं जो हमारे कुल में हमारे ही समाज में ऐसी मान हंसती का जन्म हुआ ।
यह जानकारी हमें उपलब्ध करवाई है हैदराबाद से श्री चंपालाल जी राजपुरोहित में हम उनका भी तहे दिल से धन्यवाद करते हैं
गुरु महाराज जी की पुण्य स्मृति पर फेसबुक पर राजपुरोहित समाज इंडिया द्वारा एक पोस्ट के दौरान हमें एक कमेंट मिला जालौर से अध्यापक श्रीमान महेंद्र सिंह राजपुरोहित का और उन्होंने गुरु महाराज जी के साथ रहते एक घटना का वास्तविक वर्णन हमें किया सोचा उसको मैं अपने इस जीवन परिचय में शामिल करूं प्रस्तुत है उनका यह कमेंट
गुरू जी की महानता भाग 2 :- बात उन दिनों की है जब में 1988-89 में होस्टल में पढ़ता था । एक दिन पेशाब घर में लगे टब में लड़के कंकर फेंककर निशाना लगा रहे थे।टब के छेद बंद हो गये ।पूरा भर के छलकने लगा ,पूरा पेशाबघर गीला हो गया। गुरूदेव घूमते-घूमते आते नजर पड़ी तो झट से बांह ऊंची करके पेशा भरे टब में से कंकर निकालने लगे तब हम दौड़कर गये गुरूदेव को एक तरफ लाकर हमने साफ किया। गुरूदेव ने कहा कि तुम्हारे चप्पल पेशाब में गीले होते हैं फिर तुम अपने कमरे,आश्रम,रसोई,और पता कहां कहां तक गंदगी ले जाओगे।हाथ तो गंदे कभी होते ही नहीं है,सुबह शौच के बाद सफाई करते हो ।हाथ साबुन से दो तीन बार धोते हो फिर उसी से भोजन भी करते हो ,पूजा पाठ भी करते हो कभी हाथ को काट के फेंका क्या ?"
मैं किसी की निंदा या बुराई या महानता का बखान नहीं करता हुं। ये मेरे आंखों देखी सच्ची घटना है,और आप में से किसी ने महान संत को ऐसा करते देखा हो तो जरूर बताये।
एक बार फिर से मैं हाजिर हो चुका हूं आपका सवाई सिंह आगरा मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन
जीवन परिचय की अगली श्रंखला में आप सबके बीच लेकर आया हूं सिंगर महावीर सिंह राजपुरोहित का जीवन परिचय
नाम : महावीर सिंह राजपुरोहित
पत्नी का नाम :- श्रीमती बसंती कंवर
बच्चो का नाम:- मीनाक्षी, चेतना
पिता का नाम :- श्रीमान मांगीलाल सिंह राजपुरोहित
माता का नाम :- श्रीमती मनोहरी देवी
गोत्र :- सेवड़
जन्म दिन :- 05 जुन 1992
शिक्षा:- एम.ए (हिन्दी)
गाँव का नाम :- हिंयादेसर तह. नोखा
जिला:- बीकानेर राजस्थान
भजन कलाकार महावीर सिंह के परिवार में दादीजी, माता जी, पिता जी और चार भाई के साथ एक बहन है खुशहाल परिवार है बचपन से ही इनको संगीत से प्रेम था बचपन से संगीत सुनना पसंद था औऱ इस रुचि को चरितार्थ करने करने में महावीर सिंह को गाँव के बड़े भाई देवी सिंह जी राजपुरोहित जो 2004 में गांव सतत शिक्षा केन्द्र चलाते थे उसी दौरान उन्होंने 2006 में संगीत वाद्य यंत्र (हारमोनियम) उपलब्ध करवाया। औऱ आपको पुराने भजनों की ओर आकर्षित करने में भजन सम्राट श्री रामनिवास राव व गांव के बुद्धिजीवी मधुरभाषी सत्संगी जीवनयापन करने वाले चौधरी मोडारामजी सन्त का सानिध्य प्राप्त हुआ। आपको इस कार्य में परिवार का भरपूर सहयोग मिला विशेष रूप से बड़े भाई साहब सवाई सिंह राजपुरोहित का बहुत योगदान रहा जिनकी अहमदाबाद नारोल क्षेत्र में मिठाई की दुकान है। अपनी सफलता का श्रेय अपने भाई साहब को देते हैं।
शिक्षा के लिए गांव से व गांव से बाहर भी जाना पड़ा। उसके बाद उन्होंने निश्चय कर लिया की मुझे एक अच्छा भजन गायक बनना है उसके बाद जब भी समय मिलता आप संगीत वाद्य यंत्रों को बजाने व गाने को दैनिक दिनचर्या में शामिल कर दिया। धीरे धीरे गांव के सत्संग,जागरण में भजन गायन चालू कर दिया छोटी उम्र व मधुर गायन के कारण सम्पूर्ण ग्रामवासियों का खूब स्नेह मिला जो आजतक जारी है। आप वर्तमान में प्राइवेट कंपनी में कोगटा फाइनेंस इंडिया लिमिटेड में ब्रांच मैनेजर है।
गायक महावीर सिंह से खास बातचीत में हमें बताया मेरे सौभाग्य यह है कि जब पूज्य गुरु महाराज संत श्री तुलछाराम जी महाराज के द्वारिका चातुर्मास में रात्रि सत्संग करने का अवसर मिला। फिर धीरे धीरे समाज के अन्य राज्यो के कार्यक्रमो में भजन संध्या में प्रस्तुति देना अवसर मिलने लगा।
आज आसपास के 15- 20 गांव में भजन संध्या हेतु मुझे आमंत्रित किया जाता है । इसी क्रम में मुझे 1 मार्च 2020 श्री खेतेश्वर मंदिर प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव बीकानेर में दाता के आशीर्वाद से पूरी भजन संध्या संपन्न करने का मौका मिला जो मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है ।
आपको बता दें सुगना फाउण्डेशन व राजपुरोहित समाज इंडिया द्वारा फ़ेसबुक पेज पर आयोजित परम पूज्य गुरु महाराज संत श्री खेतेश्वर महाराज जी के जन्म दिवस व पुण्यतिथि के अवसर पर लाइव भजन के प्रस्तुतियां दी है जिसे समाज के गणमान्य लोगों ने बहुत ही सराया और प्रशंसा की व साथ ही प्रिंट मीडिया ने भी उनकी सराहना की। और आपने इसी शुभ अवसर पर अपने स्वयं द्वारा लिखित भजन "धाम आसोतरा सोवणो" को फेसबुक पेज राजपुरोहित समाज इंडिया के माध्यम पर लांच किया आप इस भजन को इस लिंक पर क्लिक करके सुनव देख सकते हैं।
महावीर राजपुरोहित हियादेसर की आवाज में बहुत ही सुंदर भजन
सुगना फाउण्डेशन परिवार और राजपुरोहित समाज इंडिया टीम महावीर सिंह राजपुरोहित उज्जवल भविष्य की कामना करता है साथ ही मां सरस्वती व गुरु महाराज श्री खेतेश्वर दाता का आशीर्वाद सदैव आप पर इसी प्रकार बना रहे आप परिवार समाज और देश का नाम रोशन करें ऐसी मंगल कामना करता है।
एक बार फिर से मैं हाजिर हो चुका हूं आपका सवाई सिंह राजपुरोहित आगरा
जीवन परिचय की अगली कड़ी में आपके बीच लेकर आया हूं गिटारवादक ,संगीतकार, गायक पारस राजपुरोहित का जीवन परिचय.
नाम - पारस राजपुरोहित
पिता का नाम - श्रीमान मांगीलाल जी राजपुरोहित
माता का नाम - श्रीमती रुखमणी देवी राजपुरोहित
जन्मतिथि - 1 अप्रैल 1992
गाव - बिसू कलाँ (बाड़मेर)
गोत्र - श्रीरख
बाड़मेर जिले के बिसू कलाँ कस्बे का युवा पारस राजपुरोहित आज संगीत के हुनर के दम पर बुलंदियां छू रहे हैं। बचपन से ही संगीत का शोक रहा है । पारस राजपुरोहित मात्र 12 वर्ष की उम्र से ही संगीत सीखना शुरू कर दिया। आप नियमित रूप से रियाज के दम पर आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं आपने शुरुआती पढ़ाई आदर्श विद्या मंदिर में पढ़ने के कारण वहाँ देश भक्ति गाने गाता था जिस से गाने में आगे कुछ करने की प्रेरणा मिली। आपने एजुकेशन मगनीराम बांगड़ मेमोरियल ( M.B.M) इंजीनियरिंग कॉलेज जोधपुर से पढ़ाई की है। और आपने हाल ही में भारतीय रेलवे (इलेक्ट्रिकल) में ज्वाइन हुए हैं।
लेकिन सिंगिंग में रुचि होने के कारण संगीत में भी पढ़ाई की तथा संगीत में आपने बी ए & एम ए और यूजीसी नेट पास किया। वैसे आपको हिंदी मारवाड़ी भजन सभी तरह के गानों का शौक है पर सबसे अधिक प्रिय मारवाड़ी भाषा लगती है।
आपने हिंदी और मारवाड़ी गानों के कई प्रोग्राम किए हैं नए-नए गाने बनाकर उनको यूट्यूब चैनल के माध्यम से लोगों के सामने प्रस्तुत किए हैं इसमे ‘’माँ भारती’’ गाने को जनता का खूब प्यार मिला। जो कि एक देश भक्ति गाना है इस गाने को आप दिए गए इस लिंक पर क्लिक करके सुन सकते हैं।
पारस राजपुरोहित से खास बातचीत में उन्होंने हमें बताया कि संगीत से मेरा बचपन से लगाव है मुझे फ्री टाइम में गिटार बजाना अच्छा लगता है और मैंने अपनी पढ़ाई के साथ इसको जारी रखा बस इतना ही कहूंगा कि मेहनत के दम पर कुछ भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं आप इसी प्रकार आगे उन्नति प्राप्त करें मां सरस्वती और पूज्य गुरु श्री खेताराम जी महाराज का आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहे यही मंगल कामनाएं करता है सुगना फाउंडेशन मेघलासियां और राजपुरोहित समाज इंडिया टीम
फिर मिलते हैं किसी और जीवन परिचय के साथ तब तक के मुझे दीजिए इजाजत......
एक बार फिर से मैं हाजिर हो चुका हूं आपका सवाई सिंह राजपुरोहित आगरा
जीवन परिचय की अगली कड़ी में मैं लेकर आया हूं मंच संचालक जेठू सिंह राजपुरोहित का जीवन परिचय...
नाम :- जेठु सिंह राजपुरोहित
पिता नाम :- श्रीमान मोती सिंह राजपुरोहित
माता नाम:- श्रीमती पतासी
गोत्र:- सोमड़ा
गांव :- डोली T, पचपदरा,
जिला:- बाडमेर
जन्म:- 23-8-1994
श्री जेठू सिंह राजपुरोहित इनके परिवार में 6 भाई और एक बहन है माता, पिता खुशहाल परिवार हैं आप घर में सबसे बड़े हैं । शुरुआती पढ़ाई आपने गांव में की है संगीत से जुड़ाव बचपन से ही रहा है अपको प्रकाश माली के भजन सुनना बेहद पसंद है इसीलिए इनको सभी प्रकाश माली के निकनेम से भी जानते हैं इन्होंने अपनी हेयर स्टाइल कुछ इस प्रकार ही है रखी हुई है। इनकी शक्ल काफी हद तक प्रकाश माली जी से मिलती भी है सबसे बड़ी बात इन्होंने अपनी टिक टॉक आईडी पर भी जेठू प्रकाश सिंगर के नाम से बनी हुई है आपने कहीं प्रोग्राम में मंच संचालन किया ।
राजपुरोहित ने सबसे अधिक प्रोग्राम चेन्नई, बेंगलुरुु, पुणे, हैदराबाद , दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश आश्रम में सहित भारत में आदि स्थानों पर किया है। आप वर्तमान में मुंबई एक प्राइवेट कंपनी मे मैनेजर है।
हमें खास बातचीत में जेठू सिंह राजपुरोहित ने बताया कि मेरे जीवन में प्रकाश माली जी का बहुत बड़ा आशीर्वाद रहा है आज मैं टिक टॉक पर फेमस हूं तो प्रकाश माली जी की एक्टिंग से हूं। मैं भारतवर्ष में गौ माता की सेवा के लिए जो भी कार्यक्रम मैं करता हूं वह पूर्ण रूप से फ्री करता हूं।
हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं आप इसी प्रकार अपने कार्य में लगे रहे हैं मां सरस्वती और गुरु महाराज जी का आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहे यही मंगल कामनाएं करता है सुगना फाउंडेशन और राजपुरोहित समाज इंडिया
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एक बार फिर से मैं आप सभी के बीच हाजिर हो चुका हूं जीवन परिचय की अगली कड़ी में मैं लेकर आया हूं भजन कलाकार और सिंगर कंवर सिंह राजपुरोहित कनोडिया का जीवन परिचय..... आपका सवाई सिंह राजपुरोहित मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन एक पहल समाज के लिए
नाम:- कंवर सिंह राजपुरोहित
पिता का नाम:- श्री लुम सिंह राजपुरोहित,
माता का नाम:- श्रीमती धापू देवी,
गोत्र :- सेवड़
गांव:- कनोडिया पुरोहितान, जोधपुर
ननिहाल:- कोरना जिला बाड़मेर
जन्मतिथि:- 12 अगस्त 1982
हाल :- जोधपुर
कंवर सिंह राजपुरोहित के परिवार मे 2 भाई और तीन बहिन है इनका ससुराल बासनी राजगुरु जोधपुर में है तथा परिवार में तीन पुत्र है |परिवार में बड़ा होने के कारण शिक्षा क्षेत्र में कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं की माध्यमिक स्तर तक की पढ़ाई उपरांत ज्वेलरी व्यवसाय में सेवायें दे रहा हूं।
कंवर सिंह को बचपन से ही फिल्मी गाने सुनने का बहुत शौक था। किशोर कुमार , कुमार सानू इनके पसंदीदा गायक रहे हैं । जिनके गाने गुनगुनाता थे।
कंवर सिंह राजपुरोहित बताया कि संगीत क्षेत्र में आना एक इत्तेफाक से कम नहीं था मेरे आदरणीय श्री उदय सिंह राजपुरोहित ने जब एक बार मुझे सुना तो मुझे भजन गायक बनने का अवसर प्रदान किया और उसके बाद उनके साथ कई कार्यक्रम में हिस्सा लेता रहा और धीरे-धीरे मेरी रुचि बढ़ती गई और पहचान भी बनी जिस वजह से समाज ही नहीं वरन पूरे भारतवर्ष में अनेकों राज्यों में कार्यक्रम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
ब्रह्मधाम आसोतरा में प्रति माह पूर्णिमा को वहां सत्संग करने का अवसर मिलता रहा । साथ ही कई एल्बम में गाने का भी अवसर मिला बाल ब्रहमचारी संत शिरोमणि ब्रह्मधाम गादीपति श्री तुलसाराम जी महाराज का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। जिस कारण से मेरा हौसला बढ़ा और गुरु कृपा से आज इस मुकाम को हासिल कर पाया ।
आपने सुगना फाउंडेशन द्वारा आयोजित श्री खेतेश्वर महाराज जी के पुष्प श्रद्धांजलि के मौके पर भजन संध्या में भाग लिया। जिसका लाइव टेलीकास्ट सोशल मीडिया के सबसे बड़े प्लेटफार्म राजपुरोहित समाज इंडिया पर किया गया उस पर आपने लाइव भजनों की प्रस्तुतियां दी जिसे समाज के लोगों ने बहुत ही पसंद किया।
भजन कलाकार और सिंगर कंवर सिंह राजपुरोहित
हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं आप इसी प्रकार परिवार और समाज का नाम रोशन करें मां सरस्वती का आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहे..... टीम सुगना फाउंडेशन
आप भी भेज सकते हैं अपना जीवन परिचय अगर आप भी संगीत, साहित्य या किसी भी क्षेत्र में अपना वर्चस्व रखते हैं तो हमें जरूर लिखिए हमारा व्हाट्सएप नंबर है 92864 64911 एक विशेष सूचना एवं नोट अगर आप इस ब्लॉक से कोई भी सामग्री ले रहे हैं तो एक बार अनुमति अवश्य प्राप्त कर लें।
शहीद हरीसिंह का जन्म राजस्थान के जैसलमेर जिले के झाबरा गांव में 1 सितम्बर , 1976 को हुआ। इनके पिता श्री राधाकिशन सिंह गांव में खेती का कार्य करते है । इनकी माता का नाम श्रीमती जतन कंवर है । बाल्यावस्था से ही गौ सेवा एवं वन्य जीवों के प्रति स्नेह भाव इनके जीवन का ध्येय था । परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य ही थी । इन्होने 8 वीं तक पढाई करने के बाद अपने पिता के कार्यो में हाथ बटाना शुरू कर दिया ।
परिवारिक खेती बाडी के साथ गौ सेवा , पर्यावरण संरक्षण तथा वन्य जीवों की सेवा इनके दिनचर्या के महत्वपूर्ण कार्य थे । रेगिस्थान इलाका जहां पानी की नितान्त कमी रहती है वहां अपने टेक्टर द्वारा पानी के टेंकर लाकर गायों और वन्य जीवों की प्यास बुझाना धर्म और कर्म था । कुछ वर्ष पूर्व कानोडिया पुराहितान निवासी प्रभु सिंह सेवड की सुपुत्री नेनू कंवर के साथ इनकी शादी हो गई । शादी के बाद भी श्री हरि सिंह की दिनचर्या और व्यवहार में काई अन्तर नही आया । गौ सेवा वन्य जीवों के प्रति दया भाव, पर्यावरण संरक्षक ( खेजडी , बैर , नीम के पेड लगाकर उनका पोषण करना ) से इनका जुडाव और बढ गया । छोटे से व्यवसाय चाय की दुकान द्वारा परिवारिक कर्तव्य निभाने के साथ - साथ जब भी समय मिलता तब गांव के युवाओं को अक्सर प्रेरणा देते थे कि गौ सेवा और वन्य जीवों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है । श्री हरि सिंह के 4 संताने जिनमें 2 पुत्र एवं 2 पुत्रियां है ।
28 अप्रेल 2004 प्रति दिन की भांति इस दिन भी सांय 7 बजे के करीब श्री हरि सिंह राजपुरोहित अपने टेक्टर से पानी का टेंकर लाने हेतु घर से निकले । गांव के बाहर ( कांकड में ) इनको अचानक गोली चलने की आवाज सुनाई पडी तो इन्हे इस बात का एहसासा हो गया कि कोई शिकारी है जो वन्यजीवों का शिकार कर रहा है । श्री हरि सिंह ने उसका पिछा किया तो देखा कि कुछ लोग हिरणों का शिकार करने के लिए सशस्त्र खडे थे । वो लोग उसी क्षैत्र के भील जाति के थे जिनमें प्रमुख शिकारी ओमा राम भील था । हरि सिंह ने इनको पहचान लिया और शिकार करने से मना किया । हरि सिंह ने कहा इन निरपराध अमुक जीवों की हत्या मत करो, मगर शिकायत ने उनकी सुनी अनसुनी कर हरि सिंह को कहा कि तुम यंहा से चले जाओ वरना हिरण से पहले तुम्हे गोली मार देंगे । अदंभ्य साहस के धनी हरि सिंह ने हिम्मत नही हारी , वह उनको ललकार कर कहने लगा - '' हां मेरी जान भले ही ले लो पर इन हिरणों का शिकार मत करो '' । काफी प्रयास करने के बाद भी जब हरि सिंह को लगा कि शिकारी रूकने वाले नहीं है तो दौडकर अपने चार - पांच साथियों को लेकर आया और शिकारिंयों को ललकारा । हरि सिंह साथियों सहित वापस आने तक शिकारियों ने एक हिरण को गोली मार दी थी ।
हरि सिंह इस अमानवीय क़ृत्य को देखकर स्वयं को रोक नहीं सका उसने ओमा राम भील से कहा कि वह स्वयं को पुलिस के हवाले कर दे मगर शिकारी ने अपनी बंदूक हरि सिंह राजपुरोहित के सीने पर तानकर कहा कि तुम लोग यहां से चुपचाप चले जाओ वरना इस हिरण की तरह तुम्हे भी गोली मार देंगे । निडर और अदंभ्य साहस के धनी हरि सिंह राजपुरोहित अपने प्राणों की परवाह किये बिना शिकारियों से भीड गया । इसी समय ओमा राम भील ने हरि सिंह राजपुरोहित को गोली मार दी । गोली लगने के बाद भी खून से लथपथ हरि सिंह ने शिकारी से बंदूक और म्रत हिरण को छीन लिया ।
बंदूक की गोली से घायल हुए हरी सिंह राजपुरोहित को पोकरण अस्पताल ले जाया गया । जब तक वे अस्पताल पंहुचे तब तक बहुत सारा खून बह चूका था । और अन्तत: ... यह महान कर्मयोगी वीर एवं वन्य जीव प्रेमी नश्वर संसार को छोडकर चला गया । हालांकि शिकारी एक हिरण का शिकार कर चूका था मगर स्व. श्री हरि सिंह राजपुरोहित की आत्मा इस बात से प्रसन्न थी की आज न जाने कितने हिरणों के प्राण बच गए । हे अमर वीर । तुम्हारा यह बलिदान विश्व वन्दनीय है आज समाज ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति और प्रत्येक प्राणी तुम्हारी इस शहादत को नमन करते।।
सरकार ने शहीद को मरनोपरांत अमृतादेवी पुरस्कार से नवाजा।।
राजपुरोहित समाज की साहित्य संगीत और खेल से जुड़ी हस्तियों के परिचय एवम उपलब्धियों की श्रृंखला में हम आज लेकर आये है राजस्थानी भाषा के महान साहित्यकार स्वर्गीय श्री नृसिंह जी राजपुरोहित जी को , जो देश की आजादी से पहले से भी साहित्य साधना में राजपुरोहित समाज का नाम रोशन कर रहे थे।
18 अप्रैल 1924 को जन्मे नृसिंह जी मारवाड़ परगना के बाड़मेर जिले के खांडप गांव के निवासी थे ।
इनके पिताजी श्री रतनसिंह जी समाज के जाने माने व्यक्तित्व थे।
शुरुआती शिक्षा खांडप गांव में ही प्राप्त करने के बाद आपने कुछ वर्ष जैन गुरुकुल में अध्ययन लेने के पश्चात बाड़मेर के सरकारी विद्यालय में शिक्षा पूर्ण की । घर मे धार्मिक वातावरण के कारण आपकी बचपन से ही साहित्य में रुचि रही ।
नृसिंह जी के माता-पिता उनसे कथाएं पढ़वाकर सुनते थे।
विद्यालय के पुस्तकालय से हिंदी साहित्य के ख्यातनाम रचनाकार मुंशी प्रेमचंद और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की की रचनाएं पढ़कर इनके मन मे साहित्य के प्रति अति उत्साह बना । इसी लगाव के चलते आपने हिंदी साहित्य में एम. ए. की डिग्री प्राप्त की ।
आप हिंदी साहित्य के विद्यार्थी होने के कारण चाहते तो हिंदी साहित्य में ख्याति प्राप्त कर सकते थे पर उन्होंने मायड़ भाषा को चुना , उनका कहना था कि इस मिट्टी के सुख दुख को लिखने का आनंद जो इसी की जुबान में होगा वो हिंदी में नही होगा ।
1945 में आपने "भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थानी कवियों का योगदान " इस विषय पर शोध पूर्ण करके डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की । आजादी के बाद राजस्थानी साहित्य जगत में श्री नृसिंह जी का नाम मान सम्मान से लिया जाने लगा। डॉ नृसिंह जी बताते थे कि साहित्य में दूसरी विधाओं को छोड़ कहानी लेखन के प्रति रुचि का कारण ये था कि बचपन में मैं घर मे 'सुखसागर' और 'प्रेमसागर ' की कृष्ण कथाएं सुनाया करता था ।
1945 में आपकी पहली कहानी "पुन्न रो काम" प्रकाशित हुई और इसके बाद आप लगातार कहानी लेखन करते रहे और आम पाठकों के साथ-साथ साहित्यकारों द्वारा भी आपको मान-सम्मान मिलता रहा । 1961 में आपका पहला कहानी संग्रह "रातवासौ" प्रकाशित हुआ। इस कहानी संग्रह में कलम री मार , भीमजी ठाकर , प्रेत लीला , उत्तर भीखा म्हारी बारी , माँ रो ओरणो और रातवासौ कहानियां छपी ।
1969 में डॉ. नृसिंह जी के दो कहानी संग्रह "अमर चुनड़ी' और मऊ चाली माळवे ' प्रकाशित हुए ।
1982 में आपका चौथा कहानी संग्रह "प्रभातियो तारो" और पांचवां कहानी संग्रह "अधुरो सुपनो"1992 में छपा ।
प्रभातियो तारो कहानी संग्रह में पंद्रह कहानियां तथा अधुरो सुपनो कहानी संग्रह में सत्रह कहानियां छपी।
आपने पन्द्रह वर्ष तक माणक पत्रिका का सम्पादन भी किया।
टालस्टाय री टाळवी कथावां , संस्कृति रा सुर , मिनखपणां रो मोल , हस्या हरि मिले , धूड़ में मंडिया पगलिया और कथा सरिता का आपने मायड़ भाषा मे अनुवाद किया।
पुरस्कार-
~राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार 1969 (अमर चुनड़ी )
~ सेठ हजारीमल बांठिया पुरस्कार 1978
~ प्रभातियो तारो के लिए "पृथ्वीराज राठौड़ स्मृति अकादमी पुरस्कार 1979
~ सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार 1981
~ श्री महेंद्र जाजोदिया पुरस्कार
~श्री विष्णु हरि डालमिया पुरस्कार ।।
~ श्री रामेश्वर टाटिया पुरस्कार
महाराणा मेवाड़ साहित्य पुरस्कार ,
केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च राजस्थानी भाषा- साहित्य पुरस्कार ,
द्वारकाधाम ट्रस्ट जयपुर द्वारा साहित्य सेवा सम्मान ,
1993-94 में राजस्थानी भाषा संस्कृति एवं साहित्य अकादमी द्वारा सूर्यमल्ल मिश्रण साहित्य पुरस्कार।
श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में राज्य स्तरीय एवम राष्ट्र स्तरीय पुरस्कार ।
श्री विष्णु हरि डालमिया पुरस्कार ,
राजस्थान रत्नाकर पुरस्कार नई दिल्ली ।
श्री नृसिंह जी की कहानियों पर बंगाली, तेलगु एवम तमिल भाषा मे कई टेलीफिल्म भी बनी ।
कर्मयोगी डॉ. श्री नरसिंह जी राजपुरोहित जीवनभर मायड़ भाषा की सेवा करते हुए तथा माँ सरस्वती की साधना करते हुए अचानक 2005 में हम सब को छोड़कर स्वर्ग सिधार गए ,
लेकिन साहित्य जगत में राजपुरोहित समाज , मालाणी क्षेत्र एवम सम्पूर्ण राजस्थान का नाम चमकाकर गए।
आपकी साहित्य स्मृतियां को हम हमेशा याद रखेंगे।
फोटो एवम जानकारी Narsingh rajpurohit वेबसाइट से साभार।
उनके जन्मदिवस पर समाज महारथी श्री मनफूल सिंह जी के विचार जो कि हमें व्हाट्सएप से उन्होंने भेजे हैं
श्री मान मनफूल_सिंह, आड़सर ने कहा की 18 अप्रैल को जन्मदिवस है ब्रह्मलीन, महामना श्री नरसिंह जी राजपुरोहित खंडप मूर्धन्य विद्वान एवं साहित्यकार को सत सत नमन कोटिशः प्रणाम ।
आपके पावन जन्मदिवस पर मधुर स्मृति उभर आई । लगभग 40 वर्ष पूर्व सरवड़ी गांव में राजपुरोहित समाज का एक दिवसीय सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में मुझे नरसिंह जी खण्डप का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस सम्मेलन में परम पूजनीय श्री खेताराम जी महाराज, श्री आत्मानंद जी महाराज, श्री सेवानंद जी महाराज का सानिध्य रहाl सम्मेलन का उद्देश्य था कि संत महापुरुषों की सनिधि में राजपुरोहित समाज कैसे प्रगतिशील बने, समाज में व्याप्त कुरीतियों का निवारण हो, बालक बालिकाओं में शिक्षा प्रोत्साहित हो, परंपरागत खेती बाड़ी गौ सेवा के अलावा युवा वर्ग गांव से बाहर निकले देश प्रदेश में नौकरी व्यापार धंधा करें, समाज की समृद्धि बढ़ाएं पूज्य खेताराम जी महाराज ने फरमाया कि आप सब प्रेम रखो, माता पिता की सेवा करो, एक-दूसरे के सहयोगी रहकर सीधे मार्ग पर चलो l पूज्य आत्मानंद जी महाराज ने शिक्षा पर बल दिया समाज के बालकों के लिए छात्रावासों का निर्माण करो, आपस में प्रेम भाव रखो l श्री सेवानन्दजी महाराज ने कहा साधु संतों के प्रति आदर का भाव रखो समाज का पुण्य बढ़ाओ l दया धर्म का मूल हैl
संघे शक्ति कलियुगे l
इस प्रकार तीनों महापुरुषों ने 30 गाँवो से आए हुए इस देव सभा को आशीर्वचन वचन दिया l
इस सभा में सुशिक्षित गोलोक वासी श्री नरसिंह जी खंडप ने बहुत ही प्रभावशाली वक्तव्य से सभा को प्रभावित किया l मैंने भी गुरु महाराज की आज्ञा से अपना उद्बोधन दिया l 'हम कहां थे, कहां हैं और कहां हमें होना चाहिए' l गुरु महाराज के श्री मुख से निकला ' वाह 'हक री वातां कीनी, पण केवे वो करनो पड़े l
इस भव्य सभा को श्री अभय सिंह जी कालूडी, श्री भोपाल सिंह जी बरना , श्री भोपालसिंह जी सिलोर और श्रीकान सिंह जी सरवड़ी, श्री जसवंत सिंहजी ढाबर व अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया । इस सभा की अध्यक्षता श्री प्रताप सिंह जी अराबा ने की व कार्यक्रम का संचालन अभय सिंह जी कालूडी ने किया ।
मित्रों Rajpurohit samaj india द्वारा प्रयत्नशील ये पहल आपको कैसी लगी हमे जरूर सुझाव दीजियेगा।
अगले शनिवार हम फिर समाज की एक प्रतिभा से रूबरू करवाएंगे ।
एक विशेष सूचना
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आपका अपना सवाई सिंह राजपुरोहित
मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन आरोग्यश्री समिति
मित्रो मै महेन्द्रसिंग मूलराजोत , कैसरीसिंग जी का पुरा इतिहास नहीं लिख सकता एक ही पोस्ट मे क्युकी कैसरीसिंग जी के इतिहास की एक किताब लिखी हुई है , किताब का नाम कैसरीसिंग जी का जस प्रकाश है , मैने कुछ अलग तरीके से लिखने की सोची है कम शब्दो मे लिखने के बाद भी सब जान जावे ,
परिचय :- कैसरीसिंग जी तिंवरी के ठाकुर अखेराज जी के छोटे पुत्र थे।
कैसरीसिंग जी के पुर्वज :- तिंवरी के महान शुरवीरो के वंशज है कैसरीसिंग जी आप सातवें वंशज है :- मूलराज जी के प्रतापसिंग जी के ठाकुर कल्यानसिंग जी के रामसिंग जी के मनोहर दास जी के दलपतसिंग जी के अखेराज जी के कैसरीसिंग होते है ।
भाई : - तिंवरी ठाकुर सुरजमल जी, खीचन के जागीरदार महांसिंग जी ओर जाटियावास के जागीरदार मारवाड् के भीम जयसिंग जी
वंशज :- आप के दौ पुत्र थे , प्रतापसिंग जी खेडापा मे रहे ओर अनोपसिंग जी धुंधीय़ाडी मे रहे ।
उपाधि /खिताब :- अर्जून के समान , आप बहुत निशाने बाज थे इसलिए महाराजा ने आपको अर्जून के खिताब से सम्मानित किया
उपनाम :- आप अहमदाबाद की लड़ाई मे एक पैर मे ज्यादा चौट लगने की वजह से लंगडे चलते थे इसलिए आपको अहमदाबाद मे आज भी लंगडे बाबा य़ा खोडीय़ा बाबा के नाम से जानते है
प्रमुख कार्य : - अहमदाबाद के नबाव ज़िसकी वजह से युद्ध हुआ उसका सिर काट कर युद्ध को ज़ितने की वजह , कैसरीसिंग की वजह से युद्ध जीते थे
प्रमुख पद :- अहमदाबाद के युद्ध मे दुसरे मोर्चे के सेन्य प्रमुख आपको महाराजा अभयसिंग जी ने बनाया ओर हरावल पंक्ती /सबसे आगे लड़ने का अधिकार दिया था
खास बात :- आपने युद्ध मे खुद को बचाने के लिये कोई लौह की वस्तु य़ा ढ़ाल का उपयोग नहीं किया
गर्व की बात :- कैसरीसिंगजी का सिर कट जाने के बाद भी उनका धड् लड़ता रहा ओर सिर को उनका अरबी घोडा मुंह मे पकड कर महाराजा के पास लेकर गया था
आज के दिन विक्रम संवत विजयदसमी 1787 मे
कैसरीसिंगजी का संदेश :- भाई'- भाई आपस मे लड़कर ना मरे ओर अपनी ताकत कमजोर ना करे ज़िसका फायदा दुसमन ना उठाये ओर उनका होसला ना बढ़े , यही संदेश कैसरीसिंग जी के साथ हुई देशनिकाला
की घटना से पता चलता है क्युकी महाराजा अभयसिंग जी अपने भाई बख्तावरसिंग नागौर को मारने के लिये बारूद से उड़ाने की गुप्त साज़िश रची ज़िसका पता कैसरीसिंगजी को लगने के बाद गांगानी से नागौर ईमंरतिया बेरा जाकर बख्तावरसिंग को हकिकत
बताई ओर् रातोरात वापस आये , सुबह महाराजा को इस बात का पता लगा तो कैसरीसिंगजी को बुलाया ओर तलवार गर्दन पर रखी ओर कहा मै आपके पूर्वजो एहसानो से दबा हूँ इसलिए सिर सलामत रखता हूँ ओर कोई होता तो अभी तक सिर काट दिया होता ओर कहा आपको मै देशनिकाला देता हूँ आप अपना मुंह नहीं दिखाना मुझे दूबारा, फिर कैसरीसिंगजी जी ने कहा बख्तावरसिंग मेरे भरोसे पर आपसे समजोता करने आ रहा था मै उसके साथ धोका केसे करू यह राजपुरोहित धर्म के खिलाफ है आप अपने ही भाई की हत्या करोगे मेरे सामने तो हमारी जबान की क्या कींमत रहती ओर आपकी भी क्या इज्जत रहती भाई की हत्या के बाद ओर् कैसरीसिंगजी मारवाड् की धरती त्याग देते है ओर् नागौर बख्तावरसिंग के पास जाते है यह बात 1785 -86 की है
प्रण संकल्प :- कैसरीसिंगजी को युद्ध मे सामिल होने के लिये पत्र भेजा गया महाराजा अभयसिंग द्वारा भेजा गया उसके बाद मारवाड् की भुमी पर पैर नहीं दिया युद्ध मे जाते समय मारवाड् की सीमा के किनारे
होते हुये अहमदाबाद गये लेकीन मुंह नहीं दिखाया जीते जी मरने के बाद घोडा सिर लेकर गया तभी मुंह देखा महाराजा ने
Ye sampurn Jankari Mujhe Mahendra Singh Rajpurohit dwara bheji gai
आपका धन्यवाद पूरी पोस्ट पढने के लिये
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राजस्थान के जालौर जिले भीनमाल तहसील के छोटे से जेतु गांव के रुदवा गौत्र के राजपुरोहित परिवार के उकचंदजी को यह आभास ही नहीं था की उनका होने वाला चौथा पुत्र भी अपने भाई ( शान्तिविमल सूरीश्वरजी ) की तरह सयम मार्ग को अपनाकर जेतु गांव का और जिनशासन मे अपना नाम रौशन करेगा लेकिन होनी को मंजूर होता है वही होता है ।।
9 दिसंबर 1964 विक्रम संवत 2020 अश्वनी सूद 9 को माँ वादली बाई की कोख से बालक प्रभुलाल आपका जन्म हुआ था ।
पिता उकचंदजी और माँ वादली बाई पुत्र प्रभुलाल को अपने भाई ( शान्तिविमल सूरीश्वरजी ) के पास लेके जाते थे जो पहले ही जैन धर्म दीक्षा अंगीकार कर सुके थे ।।
बालक प्रभुलाल ने मात्र 8 वर्ष की छोटी आयु मे ही आचार्य महाराज के पास रहना स्वीकार किया और उसके 3 वर्ष पच्छात 11 वर्ष की आयु मे विक्रम संवत 2031 मगसर सुदी 4 को पालीताना श्री शत्रुंजय महातीर्थ मे दीक्षा संपन्न हुई शांतिविमल सूरीश्वरजी ने दीक्षा दी आपका नाम प्रभुलाल से प्रधुम्नविमलजी हुआ जो बाद मे जाके देश विदेश मे भाई महाराज के नाम से पहचाने जाने लगे।।
अपने गुरु शान्तिविमल सुरीजी के सनिध्य मे आपने हिंदी मारवाड़ी गुजराती संस्कृत पाकृत आदी विभिन्न भाषाओ का ज्ञान प्राप्त किया ज्योतिष शास्त्र का भी गहरा अध्यन किया आपके गुरुदेव ने आपको मंत्र साधना और ज्योतिष शास्त्र का विशेष ज्ञान दिया आपने विद्वावान मुनि जम्बूविजय जी के सानिध्य मे शंखेश्वर पाटन दसाणा माण्डल आदी विभिन्न स्थानों पे जैन धर्म के सिद्धांतो आगमो और शास्त्र का गहराई से अध्यन किया
25 मई 1983 वैशाख सुदी 11 को आपके गुरु शान्तिविमल सूरीश्वरजी का देवलोक गमन होने के कारण आपको छोटी सी उम्र मे विमल गच्छ का गच्छाधिपति बनाया गया और 20 फ़रवरी को ( महा सुदी 13 ) को मुंबई के आजाद मैदान मे नित्योदय सागर सूरीश्वरजी की निश्रा मे आपको आचार्य पद प्रदान किया गया।।
आचार्य प्रद्युम्नविमल सुरीजी के हस्ते 35 से अधीक साधु और साध्वी भगवंत की दीक्षा संपन्न हुई । और 100 से ज्यादा जिनमंदिर और गुरु मंदिरो की प्रतिष्ठाए हुई
आपके हस्ते कही अस्पताल और विद्यालय का निर्माण हुआ आपश्री ने अभी तक गुजरात राजस्थान झारखण्ड बिहार हरियाणा मध्य प्रदेश महाराष्ट्र आदी प्रदेशो मे लगभग 1 लाख किलोमीटर पदयात्रा कर चुके है आपके सरल स्वभाव के कारण हर कोई आपकी तरफ आंगतुक इनके प्रति आज्ञाध श्रद्धा से ओत प्रोत हो जाता है प्रभावपूर्ण व्यकितत्व कला और जैन धर्म का गहन अध्यन आपके व्यक्तिव से झलकता है
आपने जो मगरवाडा तीर्थ जो मणिभद्र वीर का तीसरा मूल स्थान है उसका जो निर्माण और तीर्थ के विकास के लिये जो आपने काम किया है वो अपने आप मे अविश्वनीय और अदभुत है और गिरनार तीर्थ और महातीर्थ पालीताणा के लिये जो काम कर रहे है वो वंदनीय है
आपकी निश्रा मे 2022 रत्नागिरी मिनी पालीताणा तीर्थ बनकोड़ा डूंगरपुर के समीप का निर्माण होने जा रहा है आपने शासन के लिये ऐसे कही कार्य किये है वो अपने आप मे अदभुत है
आपश्री ने कही ऐतिहासिक चातुर्मास किये है जिसमे गिरनार पालीताणा और नाकोड़ा का नाम आता है
आपकी सबसे बड़ी विशेषता यह है की जैन समाज के साथ साथ सम्पूर्ण सनातन और हिन्दू समाज के भी हजारो भक्तो के आगाध श्रद्धा के केंद्र है
आपश्री का 2020 का चातुर्मास मगरवाडा जैन तीर्थ पालनपुर के समीप है।
आप सभी महानुभावो को जय दाता री सा, जय रघुनाथजी री सा अर्ज करता हूं और मैं हूं सवाई सिंह राजपुरोहित मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन व आरोग्यश्री समिति आगरा
और जीवन परिचय की अगली कड़ी में लेकर आया हूं आप सबके बीच युवा भजन कलाकार और मेरे अजीज मित्र भजन गायक गौतम सिंह राजपुरोहित आऊवा का संक्षिप्त जीवन परिचय
नाम : गौतम सिंह राजपुरोहित
जन्म दिन :01/01/1990
पिता का नाम : श्री रामेश्वर सिंह राजपुोहित
माता का नाम : श्रीमती चंद्रा देवी
गोत्र : जागरवाल
शिक्षा:- जेटकिंग एंड कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर ऑरिकल
गाव का नाम : आऊवा (जिला पाली)
भजन कलाकार गौतम सिंह के परिवार में माता जी, पिता जी और तीन भाई के साथ एक बहन है खुशहाल परिवार है बचपन से ही इनको संगीत से प्रेम था और इनके दादा जी का भी गाव के आस पास गावों में इनके दादाजी लाल सिंह के भजनों की अच्छी पहचान थी और गौतम जी को बचपन से संगीत सुनना पसंद था जब यह दस साल के थे जबसे मंचो पर काम करना शुरू कर दिया था और इनके परिवार ने भी इनका सात दिया।
शिक्षा के लिए गाव से बाहर बैंगलोर जाना पड़ा इनके अंदर की लगन हमेशा पुराने भजनों की ओर ले जाने का प्रयास कर रही थी फिर 2008 मे बैंगलोर मे स्व गुरुदेव रामनिवास जी राव का प्रोग्राम मे मजीरे बजाने शुरु किये और लगातार 15 दिन तक उनके जागरण मे गये और पूरी तरह उनके भजनों मे लीन हो गया।
उसके बाद उन्होंने निश्चय कर लिया की मुझे एक अच्छा सिंगर बनना है उसके बाद वह आउट ऑफ इंडिया चले गए जॉब के साथ-साथ अपने गुरु रामनिवास जी के भजनों का रियाज करता था और दुबई मे राजस्थानी भाई लोग मिले। जिनके साथ मिलकर उन्होंने प्रोग्राम शुरू कर दिया उसके बाद जब वह भारत आए तो उनको राजस्थान के सभी फनकारों के सात काम किया सबका बहुत प्रेम मिला और बड़े फनकारों का आशीर्वाद आज भी मिल रहा।
गौतम राजपुरोहित बताते हैं की यह सब स्व गुरुदेव रामनिवास की कर्पा है ओर सबसे बड़ी खुशी की बात और मेरे सौभाग्य यह है कि मैं जब 10 साल का था। जब पूज्य गुरु महाराज संत श्री तुलसाराम जी के सात गाव आराबा मे राम धुन गाने का आवसर मिला ।
आज गौतम राजपुरोहित राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष में उन्होंने बड़े स्तर पर भजन संध्या का कार्यक्रम करते है जैसे बैंगलोर, पुने, मुम्बई, सूरत, चेनाई, तिरुपति, दिल्ली आदि।
सुगना फाउंडेशन एंड राजपुरोहित समाज इंडिया परिवार
आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता है आप निरंतर इसी प्रकार उन्नति के मार्ग पर चलते रहें आप और खाती प्राप्त करें ऐसी गुरु महाराज संत श्री खेतेश्वर महाराज से कामना करता है।
युवा गायक गौतम सिंह राजपुरोहित आऊवा के कांटेक्ट नांबर आप भी भजन संध्या के लिए इनके जरूर सेवा करने का मौका दे ..
Mob No 8130800461
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श्री महासिंह जी ओर् उनके पौते श्री जीवराजसिंह जी है ,
कुछ समय बाद पहली बार महासिंह जी के पुत्र ओर् जीवराजसिंह जी के पिता विजयराज सिंह जी की फोटो आपके सामने आने वाली है , मै भावण्डा कोट मे गया था ओर फोटो के बारे मे पुछ लिया , मुझे बताया की बहुत पुरानी फोटो है छपवानी है
प्रिय मित्रों आज की पोस्ट बहुत खास है जीवन परिचय की कड़ी में हम आज लेकर आए हैं एक ऐसी शख्शियत का परिचय लेकर आये है जिनके जैसे इस जगत में बहुत कम है या यूं कहें गिनती के लोग ही है । जी हां आज पर्यावरण के प्रति महान सोच और जज्बा रखने वाले पर्यावरण प्रेमी जीव प्रेमी और साईकलिस्ट श्री नरपतसिंह जी राजपुरोहित लंगेरा का जीवन परिचय वैसे आज यह किसी परिचय के मोहताज नहीं देश ही नहीं विदेशों में भी आ जिनके चर्चे हैं कई सम्मान प्राप्त कर चुके हैं साथी इन्होंने अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ते हुए नए कीर्तिमान रिकॉर्ड स्थापित किए हैं जानेंगे इनके जीवन के बारे में हमारी इस छोटी सी पोस्ट में आज का पोस्ट शुरू करते हैं
इस जीवन परिचय को लिखने के लिए भाई श्री नरपत सिंह राजपुरोहित हृदय जी का तहे दिल से धन्यवाद और आभार प्रकट करते हैं आपको बता दें नरपत सिंह राजपुरोहित राजपुरोहित समाज इंडिया के एडमिन है और आपने कई समाज कवि के जीवन परिचय लिखे हैं। जिन्हें आप पढ़ सकते हैं राजपुरोहित इंडिया पेज पर जाकर.....
ग्रीनमेन श्री नरपतसिंह जी लंगेरा संक्षिप्त परिचय।
13 फरवरी 1987 को नरपतसिंह जी का जन्म गांव लंगेरा कोजानियों की ढाणी जिला बाड़मेर में श्री करणसिंह जी के घर हुआ ।
बचपन से ही पर्यावरण के प्रति अत्यंत प्रेम रखने वाले नरपतसिंह जी का यह कार्य उस समय जुनून बन गया जब विद्यालय के शिक्षक महोदय ने कहा कि जो विद्यार्थी बरसात के मौसम में पौधों को लाकर स्कूल में रोपेगा और उनकी सेवा और निगरानी करेगा उसको मैं चॉकलेट दूंगा।
उस दिन से आप पर्यावरण के प्रति लगातार सजग है और विभिन्न क्षेत्रों में जाकर पौधे लगाते है और लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाते है ।
मिठाई की दुकान पर 9000 रूपये प्रति महीना की नोकरी करने वाले नरपतसिंह जी 5000रुपये घर पर देते है और 4000 रुपये पर्यावरण के कार्यों में खर्च करते है।
आपने अपनी बहन की शादी में उसको 251 पौधे उपहार स्वरूप देकर तथा सभी बारातियो को भी एक एक पौधा उपहार देकर पर्यावरण प्रेम का बहुत ही सुंदर सन्देश दिया।
आप पिछले चार-पांच सालों में जोधपुर जैसलमेर ,बाड़मेर जयपुर एवम टोंक के विभिन्न सार्वजनिक स्थानों एवम स्कूलों में लगभग 84000 से भी ज्यादा पौधों का पौधारोपण कर चुके है ।
आप ने पशु पक्षियों के लिए अब तक 30 पानी की कुंडियाँ , 1600 परिंडे विभिन्न क्षेत्रों में लगाये है ।
इस दौरान आपने 121 राजस्थान के राज्य पशु चिंकारा को बचाया , 3 मोर , 5 मोरनी , 1बाज ,4 खरगोश तथा 2 नीलगाय को भी बचाया ।
अबोल जीवों की हत्या करने वाले दो शिकारियों को भी पकड़वाया है।
आपने "हरित भारत हर्षित भारत मिशन " के तहत कश्मीर से लेकर गुजरात के कच्छ तक 4000 किलोमीटर की साइकिल यात्रा करके छः राज्यों में पर्यावरण एवम अबोल जीवों के प्रति प्रेम की जागरूकता बताई।
इस यात्रा को पूर्ण कर आपने विभिन्न सरकारी कार्यालयों में पौधे बांटें ।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां हम पर्यावरण के प्रति सोच भी नहीं पाते है वहीं श्री नरपतसिंह जी पर्यावरण के लिए अथक प्रयास करते हुए पर्यावरण के बिगड़ते हुए हालातों पर चिंता व्यक्त करते हुए दिखते है।
आपने जम्भू कश्मीर से पिछले साल से पर्यावरण सद्भावना एवम जल सरंक्षण को लेकर विश्व की सबसे लंबी साईकिल यात्रा शुरुआत की है ।
पिछले एक साल से साईकिल यात्रा के दौरान भी लगभग दो हजार पौधे लगा चुके है। पर्यावरण के प्रति इनके इस अटूट प्रेम के कारण ही इन्हें ग्रीनमेन भी कहा जाता है।
ये साईकिल यात्रा जम्भू कश्मीर से शुरू होकर हिमाचल प्रदेश , उत्तराखण्ड , पंजाब , हरियाणा ,उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश , राजस्थान , गुजरात , महाराष्ट्र , गोवा और कर्नाटक से होते अभी केरल में यात्रा करते हुए लगभग 20000+किलोमीटर की यात्रा कर चुके है ।
इस यात्रा के दौरान आपने किसी भी एक देश मे सबसे लंबी साईकिल यात्रा के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है ।
नरपतसिंह जी से पहले ये रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया के बेन वुड्स (सिडनीमेन) के नाम था।
इसके अलावा लन्दन के एक और रिकॉर्ड को तोड़ा है ।
नरपतसिंह जी का अगला लक्ष्य विश्व की सबसे लंबी यात्रा के रिकॉर्ड को वर्ल्ड रिकॉर्डस ऑफ लिम्का बुक में अंकित करवाना है ।
ये पूरे राजस्थान ही नहीं, पूरे राजपुरोहित समाज ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान के लिये गर्व करने योग्य अवसर है ।
मित्रों नरपतसिंह जी लंगेरा एक साधारण परिवार से आते है लेकिन उनका जज़्बा उनका जोश, उनका जुनून बहुत ही असाधारण है । आपको जानकर आश्चर्य होगा नरपतसिंह जी रोज 100-130 किलोमीटर की साईकिल यात्रा करते है।
श्री नरपतसिंह जी लंगेरा को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपके इस मंगलमय यात्रा के लिए आप परिवार और समाज का नाम रोशन कर रहे हैं गुरु महाराज से यही कामना करता हूं कि आप ऐसी लगन के साथ काम करते रहे और समाज का नाम रोशन करते रहे........ सुगना फाउंडेशन परिवार राजपुरोहित समाज इंडिया टीम 😊
पोस्ट By कवि और भाई श्री नरपत सिंह राजपुरोहित हृदय द्वारा लिखा गया है rajpurohit_samaj_india_टीम
स्वागत है आपका एक बार फिर से आप ही के मनपसंद ब्लॉग पर जिसमें हम लेकर आते हैं समाज से जुड़े साधारण और वशिष्ठ व्यक्तित्व के जीवन परिचय को और इसी कड़ी में हम आज आपके बीच लेकर आए हैं भजन कलाकार श्री विजय सिंह राजपुरोहित आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में हमारे इस विशेष पोस्ट के जरिए।
नाम:- विजय सिंह राजपुरोहित
जन्म:- 11.12.1996
पिता का नाम :- श्रीमान शैतान सिंह राजपुरोहित
माता जी का नाम:- श्रीमती भगवती देवी
गांव का नाम:- कोरणा , तहसील पचपदरा, कल्याणपुर,
जिला:- बाड़मेर
भजन कलाकार और मेरे परम मित्र विजय सिंह राजपुरोहित का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ अभी आप जोधपुर में रहते हैं और जोधपुर में ही अपनी पढ़ाई पूरी की है इनका बचपन से ही एक सपना था एक भजन कलाकार बनना और देशभक्ति गीतों को गाना व आपने अपनी स्कूल लाइफ में भी 26 जनवरी और 15 अगस्त में पर कार्यक्रमों में भाग लिया लेकिन स्कूल लाइफ के पूरे हो जाने के बाद आप प्राइवेट जॉब और प्राइवेट पढ़ाई और इन को लगने लगा कि वह संगीत की दुनिया से बहुत दूर जा रहे हैं लेकिन अपने सपने को पूरा करने के लिए आपने पूरी मेहनत की जोधपुर में अपनी पढ़ाई के साथ-साथ आपने गायकी करना शुरू किया और जागरण में जाना भजनों को सुनना और उन्हें गाना अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाया।
विजय सिंह बताते हैं एक बार जब मैं खेतेश्वर जयंती में जोधपुर पहुंचा मैंने भजन कलाकार श्रीमान उदय सिंह राजपुरोहित का भजन सुना उसी दिन दिल में लग गया कि मुझे भी एक दिन इन्हीं के जैसा एक भजन कलाकार बनना है उस दिन उन्होंने भजन कलाकार श्रीमान उदय सिंह राजपुरोहित के सामने अपनी इच्छा जाहिर की और उनको कहा कि मुझे भी आप ही की तरह एक भजन कलाकार बनना है इस पर उदय सिंह जी ने कहा बहुत अच्छी बात है उस दिन से आपने मेहनत में कोई कमी नहीं रखी दिन रात मेहनत की और एक अच्छे भजन कलाकार के रूप में उभरे आपने उदय सिंह राजपुरोहित को अपना संगीत गुरु माना और उन्हीं की प्रेरणा से आगे बढ़ते रहे और उनके के साथ जाना और उनके पीछे पीछे भजनों को गाना शुरू किया और धीरे-धीरे अभ्यास करते रहे और आज समाज में एक अच्छे भजनकार के रूप में आप ने जगह बनाई। और जो कुछ भी हूं या जो कुछ भी बना हू वह गुरु महाराज श्री खेतेश्वर महाराज व श्री तुलछारामजी महाराज का आशीर्वाद है। मेरे गुरु श्रीमान उदय सिंह राजपुरोहित का साथ है और उन्हीं के साथ रहकर आगे भी समाज का नाम रोशन करुंगा।
आज आप राजपुरोहित समाज के छोटे बड़े सभी कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं आज राजस्थान ही नहीं राजस्थान के बाहर भी आपने कहीं बड़े आयोजनों का हिस्सा बने जिसमें बेंगलुरु, सूरत, मुंबई और हैदराबाद आदि कार्यक्रम शामिल है आपने गुरु महाराज संत श्री खेतेश्वर महाराज पर कई भजन गए हैं शादी विवाह आदि समारोह के मौके पर आपने विशेष संकला भी शुरू की है आज समाज में आपकी एक विशिष्ट पहचान है सुगना फाउंडेशन मेघलासियां परिवार और राजपुरोहित समाज इंडिया टीम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं आप इसी प्रकार संगीत की दुनिया में परिवार और समाज का नाम रोशन करें ऐसी कामना करते हैं।
अब चलते चलते यूट्यूब से सुनिए यह फर्स्ट गाना जो कि पूज्य गुरु महाराज संत श्री खेतेश्वर महाराज पर गाया गया है विजय सिंह द्वारा....... और हाल ही में एक और भजन प्रस्तुत किया गया जो कि प्रियंका राजपुरोहित और विजय सिंह द्वारा संयुक्त रूप से गाया गया।
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अगर आप भजन कलाकार विजय सिंह राजपुरोहित से आमंत्रित करना चाहते हैं या किसी कार्यक्रम में बुलाना चाहते हैं तो इनका कांटेक्ट नंबर ये 8078601499 है
और इसी के साथ मुझे दीजिए इजाजत मिलते हैं किसी और जीवन परिचय के साथ अगर आप भी देना चाहते हैं समाज अपना जीवन परिचय इस ब्लॉग के माध्यम से या समाज से जुड़ी कोई न्यूज़ या कोई विज्ञापन तो मुझसे संपर्क करें मेरे व्हाट्सएप नंबर पर मेरा व्हाट्सएप नंबर है 92864 64911
आपका अपना दोस्त सवाई सिंह राजपुरोहित मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन और आरोग्यश्री समिति आगरा