Saturday 2 June 2018

दिनेशपाल सिंह राजपुरोहित बीसूकलां का जीवन परिचय



प्रिय बन्धुओ ,
               आज की कड़ी में हम ऐसे नवोदित कवि का परिचय एवम उनकी उपलब्धियों को लेकर आये है जिनकी लेखनी पर बड़े बड़े कवि अचंभित है , माँ शारदे की उनपर अतिकृपा है , वो जो भी कवित्त रचते है पढ़ने वाले के सीधे ह्रदय तक वो रचना स्थान बनाती है ।
जी हाँ हमारी आज की कड़ी के कवि है श्री दिनेशपाल सिंह आत्मज श्री शक्तिसिंह श्रीरख राजपुरोहित बीसूकलां..

      आपकी सम्पूर्ण स्कूली शिक्षा बाड़मेर में हुई। कक्षा 10वीं के बाद गवर्नमेंट पाॅलिटेक्निक कॉलेज, बाड़मेर सेमैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया।बाद में कला संकाय में स्नातक की जिसके अन्तिम वर्ष की परिक्षायें कुछ सप्ताह पूर्व ही समाप्त हुई।साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी चल रही है।साहित्य के क्षेत्र में रूचि 2016 के अन्तिम माह से जागृत हुई, जब आपने पहली बार डिंगल दोहे पढे़..फिर दिलचस्पी बढती गई, आपने उस दौरान आॅनलाइन माध्यमों पर उपलब्ध साहित्य का खूब अध्ययन किया। दोहे, सोरठे, कुण्डलिये, छप्पय, छंद, कवित्त, डिंगल गीत सबकुछ अति प्रिय लगा..कई प्राचीन डिंगल कवि जिनमें बारहठ ईश्वरदास, सूर्यमल्ल मिश्रण, हिंगलाजदान कविया आपके पसंदीदा कवि रहे..बाद में पिंगल की तरफ दिलचस्पी बढी जिनमें तुलसीदास, भूषण, पद्माकर, जगन्नाथ रत्नाकर की लेखनी से दिनेशपाल जी प्रभावित व प्रेरित हुए। आपकी कवित्त रचना की प्रेरणा भूषण व जगन्नाथ रत्नाकर हैं।  बाद के दिनों में सोशल मीडिया पर साहित्यिक ग्रुपों से जुड़ाव हुआ जिससे वर्तमान कवियों व उनकी रचनाओं की जानकारी मिली,और दिनेशपालजी की रचनाओं को मंच मिला।

       आपने अभी तक  महाराणा प्रताप , मीराबाई , माँ शारदे , माँ बीसहत्थ , शिव स्त्रोत , श्री खेतेश्वर स्तुति , झांसी की रानी की कवित्त और भगवान परशुरामजी पर अति सुंदर रचनाओं का सृजन किया है , जिसमें शिव स्त्रोत बहुत ही विशिष्ट है ।

     दिनेशपाल जी द्वारा लिखी गयी महाराणा प्रताप पर रचना आपके समक्ष रख रहा हूँ 
बै तीर तूणीरान्, म्यान में कृपान दबै,
मेछ के पगान् दबै, मान हिंदवान को।
भुजवान के भुजान, दबै दान खुर्सान ते,
कंठ के कड़ान् दबै, बान ही जबान को।
दबै गढ़ के गुमान, दिलहीं की चढान ते,
गीता के बखान दबै, गान ही कुरान को।
रावन के राव दबै, तूफान मुगलान् ते,
लेश न 'दिनेश' दबै, केश "महाराण" को।।
इसके अलावा दिनेशपाल जी द्वारा रचित खेतेश्वर स्तुति के कुछ अंश पेश कर रहा हूँ-
सुकंजआसनं मुकुंद हंस पीठ संज है;
गले प्रसून माल पै भ्रमार झुंड गुंज है।
पताक श्वेत पाण भाल भाण सा फबंत है;
नमो स्वरूप ब्रह्म संत खेत को अनन्त है।।१।।

काम है न क्रोध है, न मोह है न मोद है;
गुणी महान् वो समान गंग ही कि गोद है।
रगत्त रोम में विरक्त राग ही रमन्त है ;
नमो स्वरूप ब्रह्म संत खेत को अनन्त है।।२।।

सुनीत है सुशांत वो सुभाव से स्वछंद है;
महा मुनीश के समीप लोक जाल मंद है ।
प्रचंड रोष पेख रेल यान भी रुकन्त है;
नमो स्वरूप ब्रह्म संत खेत को अनन्त है।।

        दिनेशपाल जी की आने वाली रचनाओं में
-1. देवी बीसहथ रा सोरठा।2. ब्रह्मावतार श्रीखेतेश्वर महाराज रो झमाल छंद।3. गंगाजी रा सोरठा है ।

    प्रिय मित्रों राजपुरोहित समाज के अनमोल रत्न श्री दिनेशपाल जी का #rajpirohit_samj_india पेज सह्रदय से सम्मान करता है।
     समाज के उभरते कवि की इस विशिष्ट जानकारी को सभी तक पहुंचाने के लिए शेयर जरूर करें ।

नोट :-  अब से इस सीरीज की हर पोस्ट हर शनिवार को पेश की जाएगी ।
         धन्यवाद।

                     जय श्री खेतेश्वर दाता की सा ।
               पोस्ट by नरपतसिंह राजपुरोहित ह्रदय

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