Thursday 19 May 2022

वीर झुंझार वीर बापजी दामोदरजी का संक्षिप्त जीवन परिचय

वीर झुंझार वीर बापजी दामोदरजी का जन्म ग्राम- सांथू जिला-जालोर में सांथू के पालीवाल जागीरदार धीराजी सांथुआ के पुत्र रूप में हुआ था.. इनका विवाह सेवड़ राजपुरोहित गंगाधर जी रघुनाथजी की धर्मपरायण पुत्री दाड़म कुंवर के साथ हुआ था.!

वि. सं. 1609 के कार्तिक माह में जालोर राज्य एवं सिरोहीv पर, गायो-मवेशियों के इधर से उधर घास चरने को लेकर प्रायः छोटा-बड़ा लड़ाई-झगड़ा होता रहता था..! एक बार बात बढ़ जाने से दोनों ओर की सेना लड़ पड़ी और सिरोही राज्य की रक्षा में आए 72 बोड़ा चौहान सैनिक जालोर की सेना ने मार गिराए ! इसी संघर्ष में जालोर के 17 सोलंकी सैनिक सिरोही के सैनिको ने मार गिराए ..!

जब विवाद बहुत बढ़ने लगा तो दोनों शासनाध्यक्षो ने शांति वार्ता प्रारम्भ कर सांथू के जागीरदार धीराजी सांथूआ को यह विवाद शांतिपूर्ण सुलझाने हेतु सुपुर्द करने का निश्चय किया...!

दोनों राज्यो के दूत सांथू कोटड़ी पहुंचे तब वहां धीराजी बाहर गए हुए थे एवं उनके पुत्र कुंवर दामोदरजी वहां थे...ऐसा देख दूत निराश हो गए क्योंकि इस विवाद से अब बाहर कौन निकाले?

मनोस्थिति भांप दामोदरजी ने दूतों को बताया कि ऐसा क्या कार्य है...मैं पिताश्री की अनुपस्थिति में यथासम्भव प्रयास कर सकता हूँ..!

सीमा निरीक्षण पश्चात लोगो से बातचीत की और मन-ही-मन किसी निर्णय पर पहुंच गए तब दोनो पक्षकारों में से कुछ धीराजी की अनुपस्थिति में दामोदर जी निर्णय उचित मानने में आनाकानी करने लगे..!

इस पर वीर दामोदर जी ने दोनों पक्षो को सचेत करिये हुए कहा कि मेरा निर्णय मान्य करना ही होगा अन्यथा या सर्वनाश होगा..! 

मैं अपने बलिदान से यह सिद्ध कर दूंगा कि इस निर्णय हेतू मैं योग्य हूँ...अपनी मातृभूमि, गौमाता की रक्षा हेतू अपना अग्निस्नान करता हूँ...!

ऐसा कहकर वे अपने शरीर पर तेल सिंदूर डालकर अपने घोड़े पर अग्नि के तेज से चढे और अग्नि में प्रविष्ट हुए और चेताया कि अब जहां मेरे चीथड़े गिरे वही दोनों राज्यो की सीमा होगी....और फिर घोडा दौड़ा दिया...!

आग की लपटों से उस वीर के शरीर के अंग अग्निस्नान कर के जहां-जहां गिरे वह सीमा मान ली गई...!!

उनके इस शौर्य,बलिदान को देखने पुरे गाँव के गाँव उमड़ पड़े....पूरा जालोर एवं सिरोही राज्य राजपुरोहित दामोदरजी के बलिदान को नतशिर होकर नमन करने लगा..!

इस प्रकार तेलीया वागा धारण कर, झमर जलिया वीर झुंझार बापजी ने कैलाशनगर-मणादर और मेडा के बीच  शरीर त्याग दिया...! उसी स्थान पर वीर बावजी झुंझार दामोदरजी का स्मारक बना दिया..! वह सैकड़ो वर्षो से पूजित स्थल है...!

जब उन झुंझार जी ने पराक्रम कर अमरत्व प्राप्त किया और सन्देश अभी सांथू पहुंचना था उसी समय उनकी धर्मपत्नी को स्वतः ही ज्ञान हो गए एवं ऐसी आदर्श पत्नी ने प्राण त्याग दिए....उनका भी पाषाण विग्रह सांथू में मौजूद है...!

उन दिनों (करीब पौने पांच सौ वर्ष पूर्व) दोनों राज्यो की सरकार ने करीब 10 फ़ीट वर्गाकार के पक्के पत्थरो से निशान बनाकर पिलर निर्मित किये और ज़मीन में नीचे आ जाने से अभी 35-40 वर्ष पूर्व सिरोही एवं जालोर के जिलाधीशों ने नए पिलर उन्ही निशानों पर पुनः खड़े करवाए है जो आज भी दोनों जिलों की सीमाएं मानी जाती है...!

उनके मंदिर पर भक्त दर्शन हेतु आते रहते है... इनका मंदिर मेडा उपरला में मौजूद है....जिसका समस्त क्षेत्रवासी दर्शन लाभ लेते है!

अपने शौर्य से दो राज्यो के बीच शांति स्थापित करने के लिए राजपुरोहित झुंझार दामोदर जी के प्रति हम सब कृतज्ञ है..!


साभार- युग युगीन पाली राज्य का इतिहास-हरिशंकर जी 

स्रोत:- विक्रम सिंह लेटा के वाल से प्राप्त जानकारी