Wednesday 29 April 2020

भजन कलाकार कंवर सिंह राजपुरोहित संक्षिप्त परिचय

 एक बार फिर से मैं आप सभी के बीच हाजिर हो चुका हूं जीवन परिचय की अगली कड़ी में मैं लेकर आया हूं भजन कलाकार और सिंगर कंवर सिंह राजपुरोहित कनोडिया का जीवन परिचय..... आपका सवाई सिंह राजपुरोहित मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन एक पहल समाज के लिए


नाम:- कंवर सिंह राजपुरोहित
पिता का नाम:-  श्री लुम सिंह राजपुरोहित,
माता का नाम:- श्रीमती धापू देवी,
गोत्र :- सेवड़
गांव:- कनोडिया पुरोहितान, जोधपुर 
ननिहाल:- कोरना  जिला बाड़मेर 
जन्मतिथि:- 12 अगस्त 1982
 हाल :- जोधपुर 

  कंवर सिंह राजपुरोहित के परिवार मे 2 भाई और तीन बहिन है इनका ससुराल बासनी राजगुरु जोधपुर में है तथा परिवार में तीन पुत्र है |परिवार में बड़ा होने के कारण शिक्षा क्षेत्र में कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं की माध्यमिक स्तर तक की पढ़ाई उपरांत ज्वेलरी व्यवसाय में सेवायें दे रहा हूं।
कंवर सिंह को बचपन से ही फिल्मी गाने सुनने का बहुत शौक था। किशोर कुमार , कुमार सानू इनके पसंदीदा गायक रहे हैं । जिनके गाने गुनगुनाता थे।

  कंवर सिंह राजपुरोहित बताया कि संगीत क्षेत्र में आना एक इत्तेफाक से कम नहीं था मेरे आदरणीय श्री उदय सिंह राजपुरोहित ने जब एक बार मुझे सुना तो मुझे भजन गायक बनने का अवसर प्रदान किया और उसके बाद उनके साथ कई कार्यक्रम में हिस्सा लेता रहा और धीरे-धीरे मेरी रुचि बढ़ती गई और पहचान भी बनी जिस वजह से समाज ही नहीं वरन पूरे भारतवर्ष में अनेकों राज्यों में कार्यक्रम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

 ब्रह्मधाम आसोतरा में प्रति माह पूर्णिमा को वहां सत्संग करने का अवसर मिलता रहा । साथ ही कई एल्बम में गाने का भी अवसर मिला बाल ब्रहमचारी संत शिरोमणि ब्रह्मधाम गादीपति श्री तुलसाराम जी महाराज का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। जिस कारण से मेरा हौसला बढ़ा और गुरु कृपा से आज इस मुकाम को हासिल कर पाया । 
 आपने सुगना फाउंडेशन द्वारा आयोजित श्री खेतेश्वर महाराज जी के पुष्प श्रद्धांजलि के मौके पर भजन संध्या में भाग लिया। जिसका लाइव टेलीकास्ट सोशल मीडिया के सबसे बड़े प्लेटफार्म राजपुरोहित समाज इंडिया पर किया गया उस पर आपने लाइव भजनों की प्रस्तुतियां दी जिसे समाज के लोगों ने बहुत ही पसंद किया।

भजन कलाकार और सिंगर कंवर सिंह राजपुरोहित 
हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं आप इसी प्रकार परिवार और समाज का नाम रोशन करें मां सरस्वती का आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहे..... टीम सुगना फाउंडेशन

आप भी भेज सकते हैं अपना जीवन परिचय अगर आप भी संगीत, साहित्य या किसी भी क्षेत्र में अपना वर्चस्व रखते हैं तो हमें जरूर लिखिए हमारा व्हाट्सएप नंबर है 92864 64911 एक विशेष सूचना एवं नोट अगर आप इस ब्लॉक से कोई भी सामग्री ले रहे हैं तो एक बार अनुमति अवश्य प्राप्त कर लें।

Monday 27 April 2020

हिरण रक्षार्थ शहीद हरीसिंह राजपुरोहित का परिचय

                          शहीद_यादे..

       हिरण रक्षार्थ शहीद हरीसिंह राजपुरोहित

  शहीद हरीसिंह का जन्‍म राजस्‍थान के जैसलमेर जिले के झाबरा गांव में 1 सितम्‍बर , 1976 को हुआ। इनके पिता श्री राधाकिशन सिंह गांव में खेती का कार्य करते है । इनकी माता का नाम श्रीमती जतन कंवर है । बाल्‍यावस्‍था से ही गौ सेवा एवं वन्‍य जीवों के प्रति स्‍नेह भाव इनके जीवन का ध्‍येय था । परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्‍य ही थी । इन्‍होने 8 वीं तक पढाई करने के बाद अपने पिता के कार्यो में हाथ बटाना शुरू कर दिया ।
           परिवारिक खेती बाडी के साथ गौ सेवा , पर्यावरण संरक्षण तथा वन्‍य जीवों की सेवा इनके दिनचर्या के महत्‍वपूर्ण कार्य थे । रेगिस्‍थान इलाका जहां पानी की नितान्‍त कमी रहती है वहां अपने टेक्‍टर द्वारा पानी के टेंकर लाकर गायों और वन्‍य जीवों की प्‍यास बुझाना धर्म और कर्म था । कुछ वर्ष पूर्व कानोडिया पुराहितान निवासी प्रभु सिंह सेवड की सुपुत्री नेनू कंवर के साथ इनकी शादी हो गई ।  शादी के बाद भी श्री हरि सिंह की दिनचर्या और व्‍यवहार में काई अन्‍तर नही आया । गौ सेवा वन्‍य जीवों के प्रति दया भाव, पर्यावरण संरक्षक ( खेजडी , बैर , नीम के पेड लगाकर उनका पोषण करना ) से इनका जुडाव और बढ गया । छोटे से व्‍यवसाय चाय की दुकान द्वारा परिवारिक कर्तव्‍य निभाने के साथ - साथ जब भी समय मिलता तब गांव के युवाओं को अक्‍सर प्रेरणा देते थे कि गौ सेवा और वन्‍य जीवों की रक्षा करना हमारा कर्तव्‍य है । श्री हरि सिंह के 4 संताने जिनमें 2 पुत्र एवं 2 पुत्रियां है ।

      28 अप्रेल 2004 प्रति दिन की भांति इस दिन भी सांय 7 बजे के करीब श्री हरि सिंह राजपुरोहित अपने टेक्‍टर से पानी का टेंकर लाने हेतु घर से निकले । गांव के बाहर ( कांकड में ) इनको अचानक गोली चलने की आवाज सुनाई पडी तो इन्‍हे इस बात का एहसासा हो गया कि कोई शिकारी है जो वन्‍यजीवों का शिकार कर रहा है । श्री हरि सिंह ने उसका पिछा किया तो देखा कि कुछ लोग हिरणों का शिकार करने के लिए सशस्‍त्र खडे थे । वो लोग उसी क्षैत्र के भील जाति के थे जिनमें प्रमुख शिकारी ओमा राम भील था । हरि सिंह ने इनको पहचान लिया और शिकार करने से मना किया । हरि सिंह ने कहा इन निरपराध अमुक जीवों की हत्‍या मत करो, मगर शिकायत ने उनकी सुनी अनसुनी कर हरि सिंह को कहा कि तुम यंहा से चले जाओ वरना हिरण से पहले तुम्‍हे गोली मार देंगे । अदंभ्‍य साहस के धनी हरि सिंह ने हिम्‍मत नही हारी , वह उनको ललकार कर कहने लगा - '' हां मेरी जान भले ही ले लो पर इन हिरणों का शिकार मत करो '' । काफी प्रयास करने के बाद भी जब हरि सिंह को लगा कि शिकारी रूकने वाले नहीं है तो दौडकर अपने चार - पांच साथियों को लेकर आया और शिकारिंयों को ललकारा । हरि सिंह साथियों सहित वापस आने तक शिकारियों ने एक हिरण को गोली मार दी थी ।
          हरि सिंह इस अमानवीय क़ृत्‍य को देखकर स्‍वयं को रोक नहीं सका उसने ओमा राम भील से कहा कि वह स्‍वयं को पुलिस के हवाले कर दे मगर शिकारी ने अपनी बंदूक हरि सिंह राजपुरोहित के सीने पर तानकर कहा कि तुम लोग यहां से चुपचाप चले जाओ वरना इस हिरण की तरह तुम्‍हे भी गोली मार देंगे । निडर और अदंभ्‍य साहस के धनी हरि सिंह राजपुरोहित अपने प्राणों की परवाह किये बिना शिकारियों से भीड गया ।
             इसी समय ओमा राम भील ने हरि सिंह राजपुरोहित को गोली मार दी । गोली लगने के बाद भी खून से लथपथ हरि सिंह ने शिकारी से बंदूक और म्रत हिरण को छीन लिया ।
        बंदूक की गोली से घायल हुए हरी सिंह राजपुरोहित को पोकरण अस्‍पताल ले जाया गया । जब तक वे अस्‍पताल पंहुचे तब तक बहुत सारा खून बह चूका था । और अन्‍तत: ... यह महान कर्मयोगी वीर एवं वन्‍य जीव प्रेमी नश्‍वर संसार को छोडकर चला गया । हालांकि शिकारी एक हिरण का शिकार कर चूका था मगर स्‍व. श्री हरि सिंह राजपुरोहित की आत्‍मा इस बात से प्रसन्‍न थी की आज न जाने कितने हिरणों के प्राण बच गए । हे अमर वीर । तुम्‍हारा यह बलिदान विश्‍व वन्‍दनीय है आज समाज ही नहीं बल्कि सम्‍पूर्ण मानव जाति और प्रत्‍येक प्राणी तुम्‍हारी इस शहादत को नमन करते।।

     सरकार ने शहीद को मरनोपरांत अमृतादेवी पुरस्कार से नवाजा।।

Tuesday 21 April 2020

राजस्थानी भाषा के महान साहित्यकार स्व श्री नृसिंह राजपुरोहित जीवन परिचय

प्रिय मित्रों ,,
राजपुरोहित समाज की साहित्य संगीत और खेल से जुड़ी हस्तियों के परिचय एवम उपलब्धियों की श्रृंखला में हम आज लेकर आये है राजस्थानी भाषा के महान साहित्यकार स्वर्गीय श्री नृसिंह जी राजपुरोहित जी को , जो देश की आजादी से पहले से भी साहित्य साधना में राजपुरोहित समाज का नाम रोशन कर रहे थे।   
18 अप्रैल 1924 को जन्मे नृसिंह जी मारवाड़ परगना के बाड़मेर जिले के खांडप गांव के निवासी थे ।
इनके पिताजी श्री रतनसिंह जी समाज के जाने माने व्यक्तित्व थे।

शुरुआती शिक्षा खांडप गांव में ही प्राप्त करने के बाद आपने कुछ वर्ष जैन गुरुकुल में अध्ययन लेने के पश्चात बाड़मेर के सरकारी विद्यालय में शिक्षा पूर्ण की । घर मे धार्मिक वातावरण के कारण आपकी बचपन  से ही साहित्य में रुचि रही ।
नृसिंह जी के माता-पिता उनसे कथाएं पढ़वाकर सुनते थे। 
विद्यालय के पुस्तकालय से हिंदी साहित्य के ख्यातनाम रचनाकार मुंशी प्रेमचंद और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की की रचनाएं पढ़कर इनके मन मे साहित्य के प्रति अति उत्साह बना । इसी लगाव के चलते आपने हिंदी साहित्य में एम. ए. की डिग्री प्राप्त की ।

आप हिंदी साहित्य के विद्यार्थी होने के कारण चाहते तो हिंदी साहित्य में  ख्याति प्राप्त कर सकते थे पर उन्होंने मायड़ भाषा को चुना , उनका कहना था कि इस मिट्टी के सुख दुख को लिखने का आनंद जो इसी की जुबान में होगा वो हिंदी में नही होगा । 
1945 में आपने "भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थानी कवियों का योगदान " इस विषय पर शोध पूर्ण करके डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की ।  आजादी के बाद राजस्थानी साहित्य जगत में श्री नृसिंह जी का नाम मान सम्मान से लिया जाने लगा।  डॉ नृसिंह जी बताते थे कि साहित्य में दूसरी विधाओं को छोड़ कहानी लेखन के प्रति रुचि का कारण ये था कि बचपन में मैं घर मे 'सुखसागर' और 'प्रेमसागर ' की कृष्ण कथाएं सुनाया करता था ।

1945 में आपकी पहली कहानी "पुन्न रो काम" प्रकाशित हुई और इसके बाद आप लगातार कहानी लेखन करते रहे और आम पाठकों के साथ-साथ साहित्यकारों द्वारा भी आपको मान-सम्मान मिलता रहा । 1961 में आपका पहला कहानी संग्रह "रातवासौ" प्रकाशित हुआ। इस कहानी संग्रह में  कलम री मार , भीमजी ठाकर , प्रेत लीला , उत्तर भीखा म्हारी बारी , माँ रो ओरणो और रातवासौ कहानियां छपी । 
1969 में डॉ. नृसिंह जी के दो कहानी संग्रह "अमर चुनड़ी' और मऊ चाली माळवे ' प्रकाशित हुए । 
1982 में आपका चौथा कहानी संग्रह "प्रभातियो तारो" और पांचवां कहानी संग्रह "अधुरो सुपनो"1992 में छपा ।  
प्रभातियो तारो कहानी संग्रह में पंद्रह कहानियां तथा अधुरो सुपनो कहानी संग्रह में सत्रह कहानियां छपी। 

आपने पन्द्रह वर्ष तक माणक पत्रिका का सम्पादन भी किया। 
टालस्टाय री टाळवी कथावां , संस्कृति रा सुर , मिनखपणां रो मोल , हस्या हरि मिले , धूड़ में मंडिया पगलिया और कथा सरिता का आपने मायड़ भाषा मे अनुवाद किया। 

पुरस्कार-
~राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार 1969 (अमर चुनड़ी ) 
~ सेठ हजारीमल बांठिया पुरस्कार 1978 
~ प्रभातियो तारो के लिए "पृथ्वीराज राठौड़ स्मृति अकादमी पुरस्कार 1979 
~ सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार 1981 
~ श्री महेंद्र जाजोदिया पुरस्कार 
~श्री विष्णु हरि डालमिया पुरस्कार ।।
~ श्री रामेश्वर टाटिया पुरस्कार  
महाराणा मेवाड़ साहित्य पुरस्कार , 
केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च राजस्थानी भाषा- साहित्य पुरस्कार , 
द्वारकाधाम ट्रस्ट जयपुर द्वारा साहित्य सेवा सम्मान , 
1993-94 में राजस्थानी भाषा संस्कृति एवं साहित्य अकादमी द्वारा  सूर्यमल्ल मिश्रण साहित्य पुरस्कार। 
श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में राज्य स्तरीय एवम राष्ट्र स्तरीय पुरस्कार । 
श्री विष्णु हरि  डालमिया  पुरस्कार ,
राजस्थान रत्नाकर पुरस्कार नई दिल्ली ।

श्री नृसिंह जी की कहानियों पर बंगाली, तेलगु एवम तमिल भाषा मे कई टेलीफिल्म भी बनी ।

कर्मयोगी डॉ. श्री नरसिंह जी राजपुरोहित जीवनभर मायड़ भाषा की सेवा करते हुए तथा माँ सरस्वती की साधना करते हुए अचानक 2005 में हम सब को छोड़कर स्वर्ग सिधार गए , 
लेकिन साहित्य जगत में राजपुरोहित समाज , मालाणी क्षेत्र एवम सम्पूर्ण राजस्थान का नाम चमकाकर गए। 
आपकी साहित्य स्मृतियां को हम हमेशा याद रखेंगे। 

फोटो एवम जानकारी Narsingh rajpurohit वेबसाइट से साभार। 


उनके जन्मदिवस पर समाज महारथी श्री मनफूल सिंह जी के विचार जो कि हमें व्हाट्सएप से उन्होंने भेजे हैं 
श्री मान मनफूल_सिंह, आड़सर ने कहा की 18 अप्रैल को जन्मदिवस है ब्रह्मलीन, महामना श्री नरसिंह जी राजपुरोहित खंडप मूर्धन्य विद्वान एवं साहित्यकार को सत सत नमन कोटिशः  प्रणाम ।

 आपके पावन जन्मदिवस पर मधुर स्मृति उभर आई । लगभग 40 वर्ष पूर्व सरवड़ी गांव में राजपुरोहित समाज का एक दिवसीय सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में मुझे नरसिंह जी खण्डप का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस सम्मेलन में  परम पूजनीय श्री खेताराम जी महाराज, श्री आत्मानंद जी महाराज,  श्री सेवानंद जी महाराज का सानिध्य  रहाl   सम्मेलन का उद्देश्य था कि संत महापुरुषों की सनिधि  में राजपुरोहित समाज कैसे प्रगतिशील बने, समाज में व्याप्त कुरीतियों का  निवारण हो, बालक बालिकाओं में  शिक्षा प्रोत्साहित हो,  परंपरागत खेती बाड़ी गौ सेवा के अलावा युवा वर्ग गांव से बाहर निकले देश प्रदेश में नौकरी व्यापार धंधा करें, समाज की समृद्धि बढ़ाएं पूज्य खेताराम जी महाराज ने फरमाया कि आप सब प्रेम रखो, माता पिता की सेवा करो, एक-दूसरे के सहयोगी रहकर सीधे मार्ग पर चलो l पूज्य आत्मानंद जी महाराज ने शिक्षा पर बल दिया समाज के बालकों के लिए छात्रावासों का निर्माण करो, आपस में प्रेम भाव रखो l  श्री सेवानन्दजी महाराज ने कहा साधु संतों के प्रति आदर का भाव रखो समाज का पुण्य बढ़ाओ l दया धर्म का मूल हैl
संघे शक्ति कलियुगे l

 इस प्रकार तीनों महापुरुषों ने 30 गाँवो  से आए हुए इस देव सभा को आशीर्वचन  वचन दिया l
 इस सभा में सुशिक्षित गोलोक वासी श्री नरसिंह जी खंडप ने बहुत ही प्रभावशाली वक्तव्य से  सभा को प्रभावित किया l मैंने भी गुरु महाराज की आज्ञा से अपना उद्बोधन दिया l  'हम कहां थे, कहां हैं और कहां  हमें होना चाहिए' l गुरु महाराज के श्री मुख से निकला ' वाह 'हक री वातां कीनी, पण केवे वो  करनो पड़े l
 इस भव्य सभा को श्री अभय सिंह जी कालूडी,  श्री भोपाल सिंह जी बरना ,  श्री भोपालसिंह जी सिलोर और श्रीकान सिंह जी सरवड़ी, श्री जसवंत सिंहजी ढाबर व  अन्य  वक्ताओं ने संबोधित किया । इस सभा की अध्यक्षता श्री प्रताप सिंह जी अराबा ने की व कार्यक्रम का संचालन अभय सिंह जी कालूडी ने किया ।

मित्रों Rajpurohit samaj india द्वारा प्रयत्नशील ये पहल आपको कैसी लगी हमे जरूर सुझाव दीजियेगा। 
अगले शनिवार हम फिर समाज की एक प्रतिभा से रूबरू करवाएंगे ।

जय श्री दाता री सा ।

आपका स्नेही - नरपतसिंह राजपुरोहित ह्रदय


 एक विशेष सूचना
 आप सभी भी अपना जीवन परिचय इस पोर्टल पर भेज सकते हैं हमारा व्हाट्सएप नंबर है 92864 64911
आपका अपना सवाई सिंह राजपुरोहित
मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन आरोग्यश्री समिति

Tuesday 7 April 2020

सेवड राजपुरोहित कैसरीसिंग जी अखेराजोत

श्री गणेशाय नम : श्री नागणेचीं माता नम : 
श्री बीसभूजा माता नम : श्री खेतेश्वर नम : 
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सेवड राजपुरोहित कैसरीसिंग जी अखेराजोत 
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मित्रो मै महेन्द्रसिंग मूलराजोत , कैसरीसिंग जी का पुरा इतिहास नहीं लिख सकता एक ही पोस्ट मे क्युकी कैसरीसिंग जी के इतिहास की एक किताब लिखी हुई है , किताब का नाम कैसरीसिंग जी का जस प्रकाश है , मैने कुछ अलग तरीके से लिखने की सोची है कम शब्दो मे लिखने के बाद भी सब जान जावे , 
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परिचय :- कैसरीसिंग जी तिंवरी के ठाकुर अखेराज जी के छोटे पुत्र थे।
कैसरीसिंग जी के पुर्वज :- तिंवरी के महान शुरवीरो के वंशज है कैसरीसिंग जी आप सातवें वंशज है :- मूलराज जी के प्रतापसिंग जी के ठाकुर कल्यानसिंग जी के रामसिंग जी के मनोहर दास जी के दलपतसिंग जी के अखेराज जी के कैसरीसिंग होते है ।

भाई : -  तिंवरी ठाकुर सुरजमल जी, खीचन के जागीरदार महांसिंग जी ओर जाटियावास के जागीरदार मारवाड् के भीम जयसिंग जी 

वंशज :- आप के दौ पुत्र थे , प्रतापसिंग जी खेडापा मे रहे ओर अनोपसिंग जी धुंधीय़ाडी मे रहे ।


उपाधि /खिताब :- अर्जून के समान , आप बहुत निशाने बाज थे इसलिए महाराजा ने आपको अर्जून के खिताब से सम्मानित किया 

उपनाम :- आप अहमदाबाद की लड़ाई मे एक पैर मे ज्यादा चौट लगने की वजह से लंगडे चलते थे इसलिए आपको अहमदाबाद मे आज भी लंगडे बाबा य़ा खोडीय़ा बाबा के नाम से जानते है 

प्रमुख कार्य : - अहमदाबाद के नबाव ज़िसकी वजह से युद्ध हुआ उसका सिर काट कर युद्ध को ज़ितने की वजह , कैसरीसिंग की वजह से युद्ध जीते थे 

प्रमुख पद :- अहमदाबाद के युद्ध मे दुसरे मोर्चे के सेन्य प्रमुख आपको महाराजा अभयसिंग जी ने बनाया ओर हरावल पंक्ती /सबसे आगे लड़ने का अधिकार दिया था

खास बात :- आपने युद्ध मे खुद को बचाने के लिये कोई लौह की वस्तु य़ा ढ़ाल का उपयोग नहीं किया 

गर्व की बात :- कैसरीसिंगजी का सिर कट जाने के बाद भी उनका धड् लड़ता रहा ओर सिर को उनका अरबी  घोडा मुंह मे पकड कर महाराजा के पास लेकर गया था
आज के दिन विक्रम संवत विजयदसमी 1787 मे 

कैसरीसिंगजी का संदेश :- भाई'- भाई आपस मे लड़कर ना मरे ओर अपनी ताकत कमजोर ना करे ज़िसका फायदा दुसमन ना उठाये ओर उनका होसला ना बढ़े , यही संदेश कैसरीसिंग जी के साथ हुई देशनिकाला 
की घटना से पता चलता है क्युकी  महाराजा अभयसिंग जी अपने भाई बख्तावरसिंग नागौर को मारने के लिये बारूद से उड़ाने की गुप्त साज़िश रची ज़िसका पता कैसरीसिंगजी को लगने के बाद  गांगानी से नागौर ईमंरतिया बेरा जाकर बख्तावरसिंग को हकिकत
बताई ओर् रातोरात वापस आये , सुबह महाराजा को इस बात का पता लगा तो कैसरीसिंगजी को बुलाया ओर तलवार गर्दन पर रखी ओर कहा मै आपके पूर्वजो एहसानो से दबा हूँ इसलिए सिर सलामत रखता हूँ ओर कोई होता तो अभी तक सिर काट दिया होता ओर कहा आपको मै देशनिकाला देता हूँ आप अपना मुंह नहीं दिखाना मुझे दूबारा, फिर कैसरीसिंगजी जी ने कहा बख्तावरसिंग मेरे भरोसे पर आपसे समजोता करने आ रहा था मै उसके साथ धोका केसे करू यह राजपुरोहित धर्म के खिलाफ है आप अपने ही भाई की हत्या करोगे मेरे सामने तो हमारी जबान की क्या कींमत रहती ओर आपकी भी क्या इज्जत रहती भाई की हत्या के बाद ओर् कैसरीसिंगजी मारवाड् की धरती त्याग देते है ओर् नागौर बख्तावरसिंग के पास जाते है यह बात 1785 -86 की है 

प्रण संकल्प :- कैसरीसिंगजी को युद्ध मे सामिल होने के लिये पत्र भेजा गया महाराजा अभयसिंग द्वारा भेजा गया उसके बाद मारवाड् की भुमी पर पैर नहीं दिया युद्ध मे जाते समय मारवाड् की सीमा के किनारे 
होते हुये अहमदाबाद गये लेकीन मुंह नहीं दिखाया जीते जी मरने के बाद घोडा सिर लेकर गया तभी मुंह देखा महाराजा ने 
Ye sampurn Jankari Mujhe Mahendra Singh Rajpurohit dwara bheji gai

आपका धन्यवाद पूरी पोस्ट पढने के लिये

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Friday 3 April 2020

समाज के महान संत का जीवन परिचय

राजस्थान के जालौर जिले भीनमाल तहसील के छोटे से जेतु गांव के रुदवा गौत्र के राजपुरोहित परिवार के उकचंदजी को यह आभास ही नहीं था की उनका होने वाला चौथा पुत्र भी अपने भाई ( शान्तिविमल सूरीश्वरजी ) की तरह सयम मार्ग को अपनाकर जेतु गांव का और जिनशासन मे अपना नाम रौशन करेगा लेकिन होनी को मंजूर होता है वही होता है ।। 

9 दिसंबर 1964 विक्रम संवत 2020 अश्वनी सूद 9 को माँ वादली बाई की कोख से बालक प्रभुलाल आपका जन्म हुआ था ।
पिता उकचंदजी और माँ वादली बाई पुत्र प्रभुलाल को अपने भाई ( शान्तिविमल सूरीश्वरजी ) के पास लेके जाते थे जो पहले ही जैन धर्म दीक्षा अंगीकार कर सुके थे ।। 
बालक प्रभुलाल ने मात्र 8 वर्ष की छोटी आयु मे ही आचार्य महाराज के पास रहना स्वीकार किया और उसके 3 वर्ष पच्छात 11 वर्ष की आयु मे विक्रम संवत 2031 मगसर सुदी 4 को पालीताना श्री शत्रुंजय महातीर्थ मे दीक्षा संपन्न हुई शांतिविमल सूरीश्वरजी ने दीक्षा दी आपका नाम प्रभुलाल से प्रधुम्नविमलजी हुआ जो बाद मे जाके देश विदेश मे भाई महाराज के नाम से पहचाने जाने लगे।। 
अपने गुरु शान्तिविमल सुरीजी के सनिध्य मे आपने हिंदी मारवाड़ी गुजराती संस्कृत पाकृत आदी विभिन्न भाषाओ का ज्ञान प्राप्त किया ज्योतिष शास्त्र का भी गहरा अध्यन किया आपके गुरुदेव ने आपको मंत्र साधना और ज्योतिष शास्त्र का विशेष ज्ञान दिया  आपने विद्वावान मुनि जम्बूविजय जी के सानिध्य मे शंखेश्वर पाटन दसाणा माण्डल आदी विभिन्न स्थानों पे जैन धर्म के सिद्धांतो आगमो और शास्त्र का गहराई से अध्यन किया 
25 मई 1983 वैशाख सुदी 11 को आपके गुरु शान्तिविमल सूरीश्वरजी का देवलोक गमन होने के कारण आपको छोटी सी उम्र मे विमल गच्छ का गच्छाधिपति बनाया गया और 20 फ़रवरी को ( महा सुदी 13 ) को मुंबई के आजाद मैदान मे नित्योदय सागर सूरीश्वरजी की निश्रा मे आपको आचार्य पद प्रदान किया गया।। 
आचार्य प्रद्युम्नविमल सुरीजी के हस्ते 35 से अधीक साधु और साध्वी भगवंत की दीक्षा संपन्न हुई । और 100 से ज्यादा जिनमंदिर और गुरु मंदिरो की प्रतिष्ठाए  हुई
आपके हस्ते कही अस्पताल और विद्यालय का निर्माण हुआ आपश्री ने अभी तक गुजरात राजस्थान झारखण्ड बिहार हरियाणा मध्य प्रदेश महाराष्ट्र आदी  प्रदेशो मे लगभग 1 लाख किलोमीटर पदयात्रा कर चुके है आपके सरल स्वभाव के कारण हर कोई आपकी तरफ आंगतुक इनके प्रति आज्ञाध श्रद्धा से ओत प्रोत हो जाता है प्रभावपूर्ण व्यकितत्व कला और जैन धर्म का गहन अध्यन आपके व्यक्तिव से झलकता है 
आपने जो मगरवाडा तीर्थ जो मणिभद्र वीर का तीसरा मूल स्थान है उसका जो निर्माण और तीर्थ के विकास के लिये जो आपने काम किया है वो अपने आप मे अविश्वनीय और अदभुत है और गिरनार तीर्थ और महातीर्थ पालीताणा  के लिये जो काम कर रहे है वो वंदनीय है 
आपकी निश्रा मे 2022 रत्नागिरी मिनी पालीताणा तीर्थ बनकोड़ा डूंगरपुर के समीप का निर्माण होने जा रहा है आपने शासन के लिये ऐसे कही  कार्य किये है  वो अपने आप मे अदभुत है 
आपश्री ने कही ऐतिहासिक चातुर्मास किये है जिसमे गिरनार पालीताणा और नाकोड़ा का नाम आता है 
आपकी सबसे बड़ी विशेषता यह है की जैन समाज के साथ साथ सम्पूर्ण सनातन और हिन्दू समाज के भी हजारो भक्तो के आगाध श्रद्धा के केंद्र है 
आपश्री का 2020 का चातुर्मास मगरवाडा जैन तीर्थ पालनपुर के समीप है।
लिखित :- 
परम गुरु भक्त 
अंकुश अलकेश जैन सूरत
प्रकाश पुरोहित दासपाॕ