Thursday 31 May 2018

वरिष्ठ साहित्यकार मारवाड़ रत्न श्री देवकिशन राजपुरोहित चम्पाखेड़ी

      आज की पोस्ट में हम जिनका परिचय लेकर आये है वो शख्शियत वैसे तो किसी परिचय की मोहताज नहीं है , जी हां हम बात कर रहे है वरिष्ठ साहित्यकार मारवाड़ रत्न श्री देवकिशन जी राजपुरोहित चम्पाखेड़ी की ।

    राजस्थानी साहित्य के लिए श्री देवकिशन जी एक चमत्कार है , आपने 6 अक्टूम्बर 1944 के आसपास 25 वर्ष की उम्र से कहानियां लिखनी शुरू की ।
देवकिशन जी साहित्य, शिक्षा, पत्रकारिता, संपादन अभिनय आदि क्षेत्रों में अपना मुकाम बना चुके हैं। यह मूलतः चंपाखेड़ी (मेड़ता) के निवासी हैं। आप राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार है जिन्होंने सर्वाधिक राजस्थानी उपन्यास लिखे हैं। साथ ही आप की रचनाएं विभिन्न पाठ्यक्रमों का हिस्सा भी रही है। अब तक इनके साहित्यक अवदान पर दो शोध तीन एम.फील. और दो लघु शोध भी हो चुके है। उनके साहित्य के समग्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। जो राजस्थानी साहित्य को भवानी शंकर व्यास ’विनोद’ हिंदी साहित्य को फारुख अफरीदी तथा व्यंग्ग साहित्य को मनोहर सिंह राठौड़ ने ग्रंथावली के रूप में प्रस्तुत किया है।
    मारवाड़ रत्न और अन्य कई पुरस्कारों एवम उपाधि से आप सम्मानित हो चुके है ।
श्री देवकिशन जी राजपुरोहित की रचनायें
1. वरजूडी रौ तप-कहाणी संग्रै 2. दांत-कथावां-लोककथा 3. याहिया मान ले कैणौ-काव्य संग्रै 4. राजस्थान शासन परिचयाकंन 5. संसद में राजस्थान 6. पंचायत राज प्रतिनिधि 7. सोसर बंद-कहाणी संग्रै 8. राजनैतिक नारी रत्न 9. राजस्थान के मुख्यमंत्री-परिचय 10. मरूधर ज्योति-राजस्थानी पत्रिका (सम्पादन) 11. सूरज-राजस्थानीउपन्­यास 12. जंजाळ-राजस्थानी उपन्यास 13.कपूत-राजस्थानी उपन्यास 14. धाडवी-राजस्थानी उपन्यास 15. कळंक-राजस्थानीउपन्­यास 16. काळवी विशेषांक-संपादन 17. गजरो-संपादन 18. दातार-राजस्थानी उपन्यास 19. लिछमी राजस्थानी उपन्यास 20.त्रिवेणी-हिन्दी उपन्यास 21. बटीड-कहाणी संग्रै 22. स्म्रतियों के गवाक्ष-हिन्दी संस्मरण 23. ममता-हिन्दी संस्मरण 24. जुगत-राजस्थानीसंस्­मरण 25. मीरांबाई-जीवन व्रतांत 26. चमत्कार 27. आचार्य सप्तरिषी 28. पगली 29. खेजडी-राजस्थानी उपन्यास 30. किरण-राजस्थानीउपन्­यास 31. सगत-राजस्थानी ऐतिहासिक नाटक 32. मंगती-उपन्यास ।
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    राजपुरोहित समाज और राजस्थान का सर साहित्य द्वारा गर्व से ऊंचा रखने वाले श्री देवकिशनजी राजपुरोहित का हम सह्रदय से सम्मान करते है ।

  प्रिय बन्धुओं आपको हमारी ये पहल कैसी लगी हमे जरूर बताएं ,
      आप भी राजपुरोहित समाज के साहित्यकार , संगीतकार या खेल से जुड़ी प्रतिभा के बारे में हमे लिखकर भेज सकते है ।
    ये जानकारी हर बन्धु पढ़े इसलिए इस पोस्ट को शेयर जरूर करें ।

               जय श्री खेतेश्वर दाता री सा ।

         प्रस्तुतकर्ता:-  नरपतसिंह राजपुरोहित ह्रदय
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Tuesday 22 May 2018

राजाजी श्री निर्मलनाथजी महाराज का जीवन परिचय

राजाजी श्री निर्मलनाथजी महाराज का जीवन परिचय

    श्री निर्मलनाथजी महाराज का जन्म गाँव मोदरा, जिला जालौर मे राजपुरोहित जागरवाल कुल मे विक्रम संवत 2039 मे मगसर शुक्लपक्ष नवमी को हुआ था, नाथजी के बचपन का नाम - नारायण था ।

        पिताजी का नाम ओखसिंह जी एवं मातश्री का नाम मुंगीदेवी है, निर्मलनाथजी चार भायों मे दुसरे नम्बर है, ननिहाल गांव ओटवाला जिला जालौर में है ।

        एक बार निर्मल नाथजी के माता पिता पुत्र प्राप्ति हेतु पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज की शरण मे गयेे, और पुत्र प्राप्ति हेतु उन्होने पीरजी महाराज से आशीर्वाद मांगा, तो गुरुदेव ने भक्त की इच्छा पर उन्हें चार पुत्रो का आशीर्वाद दिया,  तब आपके माता पिता ने कहा कि, हे दाताश्री अगर हमे आपने चार पुत्र दे दिए तो एक पुत्र को हम आपकी सेवा मे अर्पण कर देगे ।

       पिरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज की कृपा से ओख सिंह जी को एक के बाद एक चार पुत्रों की प्राप्ति हुई ।

       एक बार श्री शान्तिनाथजी महाराज मोदरा पधारे तो आपके पिताजी ने अपने चारो पुत्रो को नाथजी महाराज के समुख खडा कर दिया, और कहा कि हे गुरुवर ये चारो आपके कृपा की देन है, आप जिसे चाहे उसे अपनी शरण मे स्वीकार लो ।

        तब श्री शान्तिनाथजी  महाराज ने नारायण के सर पर हाथ धर दिया, और आदेश दिया कि " ॐ नम: शिवाय " जपते रहो, और नारायण का नाम करण " निर्मल ,, कर दिया, तब आपकी ऊमर दस वर्ष की थी, उस दिन के बाद से आप " हरी " की भक्ति मे लिन हो गये ।

      पन्द्राह वर्ष की ऊमर मे आपको विक्रम संवत 2057 चैत्रसुदी एकम की अमावश्सा को गुरुदेव जी के चरणों में सिरेमंदिर में अर्पण किया, कानो कुण्डल विक्रम संवत 2060 मे धार करवा कर पूर्ण नाथ बना कर निर्मलनाथ कहलाये, आप गुरुजी श्री शान्तिनाथजी महाराज की तन मन से सेवा करने लगे, एक दिन श्री शांतिनाथजी महाराज ने अपने शिष्य कमलनाथजी से कान फुकवा कर आपको उनका शिष्य बना कर श्री शान्तिनाथजी महाराज दादा गुरु बन गये ।

       श्री निर्मलनाथजी की कुटंब यात्रा सन् 2006 मे वैसाख सुदी चौदस को हुई ।

      कणीयागिरी पर्वत पर श्री जलंधरनाथजी महाराज की तपोस्थली सिरेमन्दिर पर आपने कर्म एवं भक्ति की एवं दादा गुरू श्री शान्तिनाथजी महाराज की सेवा तन मन से की थी, इसी कारण दादागुरु श्री शान्तिनाथजी महाराज के आशीर्वाद से ही आज आप नाथ संप्रदाय के राजा के पद पर कडली मठ मेंगलोर में विराजमान है

      श्री निर्मलनाथजी महाराज को सन 2015 अगस्त नाशिक कुंभ मेले में अखिल भारतीय नाथ सम्प्रदाय के समस्त साधु संतों, पीठाधीशो, शंकराचार्यो एवं योगियों द्वारा नाथ सम्प्रदाय के राजा के लिए निर्विरोध चुना गया

   श्री निर्मलनाथजी महाराज पैदल नाशिक कुंभ मेले से झुन्डी यात्रा द्वारा 8 महीने में मेंगलोर पहुंचे थे, एवं 7 मार्च 2016 को राजाजी का गादी तिलक हुआ था

       श्री निर्मलनाथजी महाराज दादा गुरु पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज की असीम कृपा एवं श्री गंगानाथजी महाराज के पूर्ण सहयोग से अखिल भारतीय नाथ सम्प्रदाय के राजा के पद पर आसीन हुए

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