Monday 12 September 2022

श्री श्री 1008 पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज सिरेमन्दिर दसवीं पुण्यतिथि 2022 पर विशेष

राजा भरथरी वैराग पंथ में नाथसंप्रदाय के महान योगिराज शिव अवतार ब्रह्मलीन योगेश्वर श्री जलन्धरनाथजी पीठ सिरेमंदिर के पीठाधीश श्री श्री 1008 पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज जालौर

पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज का जन्म गाँव भागली पिता रावतसिंहजी एवं माँ श्री सिणगार कंवर के आँगन में हुआ था, जिनका नाम ओटसिंह रखा जिन्हें दुनिया आज पीरजी बावसी के नाम से जानती है ।

● जन्म - 29 जनवरी 1940 , वि. सं. 1996 माघ कृष्ण पक्ष पंचमी सोमवार

● दिक्षा - 1 नवम्बर 1954 , वि. सं. 2011 शुक्ल पक्ष पंचमी सोमवार


● पिठाधीश आसीन 28 अक्टूबर 1968 , वि. सं. 2025 कार्तिक शुक्ला सप्तमी सोमवार 


● देवलोक गमन - 1 अक्टूबर 2012 , वि. सं. 2069 आसोज वदी प्रतिपदा सोमवार


● गुरू - श्री श्री 1008 श्री केशरनाथजी महाराज 


बावसी ने अपने जीवन काल में अनेक भक्तो को पर्चे ( समत्कार ) दिये वही सबसे बड़ा समत्कार सोमवार का शुभ दिन है ।

रावतसिंह जी ने अपने इस पुत्र की अत्यन्त शान्त, सोम्य एवं साधु पृकृति, अन्तरीय प्रेरणा देखकर इनको श्री केशरनाथजी के चरणों में समप्रित कर दिया, यह बात वि. सं. 2007 की है, महज 10 वर्ष की की अल्प आयु में उन्होंने" योगीराज श्री केशरनाथजी महाराज के चरणों का आश्रय पा लिया, ओटसिंह का दृढ आस्था मधुर स्वभाव समर्पित सेवा तथा शान्त चित देखकर योगमुर्ति श्री केशरनाथजी महाराज उनसे बहुत प्रसन्न हो गये, फलतः वि. सं. 2011 को सिरेमन्दिर पर वेश देकर ओटसिह को दीक्षीत किया और उनका नाम शान्तिनाथ रख दिया ।

जेष्ठ गुरूभाई एवं सिरेमंदिर के पिठाधिश्वर श्री भोला नाथजी महाराज के देवलोक गमन के उपरान्त वि. सं. 2025 को श्री श्री 1008 श्री शान्तिनाथजी महाराज का इस गोरवशाली जलंधरपीठ सिरेमन्दिर पर पीठाधिश्वर के रूप में गादी तिलक हुआ ।

पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज ने अपने जीवन काल में जालौर जिले के कई गाँवो में जगह जगह पर मंदिरों का निर्माण करवाया, और सिरेमंदिर, भेरुनाथजी का अखाडा तथा चित्तहरणी पर तो इतना निर्माण कार्य करवाया जिसका कोई वर्णन ही नही है, इसके अलावा जोधपुर और गुजरात में भी कई मंदिरों का निर्माण करवाया, इसके लिए इन्हे विश्वकर्मा भी कहा गया है ।

जालौर में राठौडों की कुलदेवी नागणेश्वरी माताजी का भव्य मन्दिर और प्रवेश द्वार का निर्माण भी उनके द्वारा ही किया गया है, बावसी ने अपने जीवन काल में 32 चतुर्थमार्च किये है, कुम्भ मेले पर भी बावसी की असीम कृपा रही है, बावसी को पीर की पदवी कुंभ मेले से प्राप्त है, बावसी को पीर परम् पद की पदवी अपने कठोर तपोबल एवं समत्कारों के कारण प्राप्त थी ।

पीरजी बावसी ने सदैव जन-हीत को वरीयता दी और वही किसी ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, छोटे-मोटे, जात-पात के भेद भाव को भूलकर एक धर्म का सन्देश देते रहे, वे अदभूत तृतिय दर्शी व्यक्ति के धनी होने के साथ साथ में नाथ परम्परा के भी बड़े जानकार थे, उन्होंने हमेशा अपने भक्तों पर दया दृष्टि बनाये रखी, और अपने भक्तों का दुःख निवारण करते रहे, स्वयं मेरे परिवार पर बावसी की अनुकम्पा अमृत वर्षा बनकर वर्षी है, नाथजी बावसी को सादर प्रणाम

पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज ज्यादातर मौन ही रहते थे, कम ही बोलते थे,परन्तु उनका चिर मौन टुटता तो उनकी मधुर एवं दिव्य वाणी अर्मृत वर्षा से कम नही होती थी, गुरु महाराज श्री शांतिनाथजी महाराज, नाथसंप्रदाय के नाथजी कोमी एकता की मिशाल थे ।

पीरजी बावसी श्री शान्तिनाथजी महाराज भगवान् शिवजी के अवतार माने जाते है, उन्हीने अपने भक्तो को कई समत्कार दिये, उनकी चरण में कोई भी दुःख दर्द लेकर जाता था, उसका निवारण करते थे, जिसने भी सच्चे मन से बावसी की भक्ति की है, वो सुखी है ।

श्री शान्तिनाथजी महाराज हिन्दू, मुस्लिम सभी धर्म के लोगों को आदर भाव देते थे, लोग इन्हें पीरजी बावसी के नाम से सम्बोधित करते है, वो किसी एक जाती के गुरु नही है, बल्कि सभी जाती समुदाओं के गुरु है, उनकी पूजा घर घर में होती है, आज भी इनकी समाधी पर जाने से मनोकामनाये पूर्ण होती है


1 अक्टूबर 2012 सोमवार को उन्होंने अपना शरीर छोड दिया, लेकिन साथ ही छोड गये अपनी जन-मन में कभी भी नही मिटने वाली अमिट छाप, बावसी की दसवी पुण्यतिथि दिनांक 11 सितंबर 2022, आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा रविवार को है, गुरु महाराज की समाधि श्री जलन्धर नाथपीठ सिरेमंदिर जालौर के प्रांगण में स्थित है, पीरजी बावसी की पुण्यतिथि हिन्दू पंचांग के अनुसार तिथि आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को मनाई जाती है ।


✍️ भंवरसिंह भागली

Thursday 19 May 2022

वीर झुंझार वीर बापजी दामोदरजी का संक्षिप्त जीवन परिचय

वीर झुंझार वीर बापजी दामोदरजी का जन्म ग्राम- सांथू जिला-जालोर में सांथू के पालीवाल जागीरदार धीराजी सांथुआ के पुत्र रूप में हुआ था.. इनका विवाह सेवड़ राजपुरोहित गंगाधर जी रघुनाथजी की धर्मपरायण पुत्री दाड़म कुंवर के साथ हुआ था.!

वि. सं. 1609 के कार्तिक माह में जालोर राज्य एवं सिरोहीv पर, गायो-मवेशियों के इधर से उधर घास चरने को लेकर प्रायः छोटा-बड़ा लड़ाई-झगड़ा होता रहता था..! एक बार बात बढ़ जाने से दोनों ओर की सेना लड़ पड़ी और सिरोही राज्य की रक्षा में आए 72 बोड़ा चौहान सैनिक जालोर की सेना ने मार गिराए ! इसी संघर्ष में जालोर के 17 सोलंकी सैनिक सिरोही के सैनिको ने मार गिराए ..!

जब विवाद बहुत बढ़ने लगा तो दोनों शासनाध्यक्षो ने शांति वार्ता प्रारम्भ कर सांथू के जागीरदार धीराजी सांथूआ को यह विवाद शांतिपूर्ण सुलझाने हेतु सुपुर्द करने का निश्चय किया...!

दोनों राज्यो के दूत सांथू कोटड़ी पहुंचे तब वहां धीराजी बाहर गए हुए थे एवं उनके पुत्र कुंवर दामोदरजी वहां थे...ऐसा देख दूत निराश हो गए क्योंकि इस विवाद से अब बाहर कौन निकाले?

मनोस्थिति भांप दामोदरजी ने दूतों को बताया कि ऐसा क्या कार्य है...मैं पिताश्री की अनुपस्थिति में यथासम्भव प्रयास कर सकता हूँ..!

सीमा निरीक्षण पश्चात लोगो से बातचीत की और मन-ही-मन किसी निर्णय पर पहुंच गए तब दोनो पक्षकारों में से कुछ धीराजी की अनुपस्थिति में दामोदर जी निर्णय उचित मानने में आनाकानी करने लगे..!

इस पर वीर दामोदर जी ने दोनों पक्षो को सचेत करिये हुए कहा कि मेरा निर्णय मान्य करना ही होगा अन्यथा या सर्वनाश होगा..! 

मैं अपने बलिदान से यह सिद्ध कर दूंगा कि इस निर्णय हेतू मैं योग्य हूँ...अपनी मातृभूमि, गौमाता की रक्षा हेतू अपना अग्निस्नान करता हूँ...!

ऐसा कहकर वे अपने शरीर पर तेल सिंदूर डालकर अपने घोड़े पर अग्नि के तेज से चढे और अग्नि में प्रविष्ट हुए और चेताया कि अब जहां मेरे चीथड़े गिरे वही दोनों राज्यो की सीमा होगी....और फिर घोडा दौड़ा दिया...!

आग की लपटों से उस वीर के शरीर के अंग अग्निस्नान कर के जहां-जहां गिरे वह सीमा मान ली गई...!!

उनके इस शौर्य,बलिदान को देखने पुरे गाँव के गाँव उमड़ पड़े....पूरा जालोर एवं सिरोही राज्य राजपुरोहित दामोदरजी के बलिदान को नतशिर होकर नमन करने लगा..!

इस प्रकार तेलीया वागा धारण कर, झमर जलिया वीर झुंझार बापजी ने कैलाशनगर-मणादर और मेडा के बीच  शरीर त्याग दिया...! उसी स्थान पर वीर बावजी झुंझार दामोदरजी का स्मारक बना दिया..! वह सैकड़ो वर्षो से पूजित स्थल है...!

जब उन झुंझार जी ने पराक्रम कर अमरत्व प्राप्त किया और सन्देश अभी सांथू पहुंचना था उसी समय उनकी धर्मपत्नी को स्वतः ही ज्ञान हो गए एवं ऐसी आदर्श पत्नी ने प्राण त्याग दिए....उनका भी पाषाण विग्रह सांथू में मौजूद है...!

उन दिनों (करीब पौने पांच सौ वर्ष पूर्व) दोनों राज्यो की सरकार ने करीब 10 फ़ीट वर्गाकार के पक्के पत्थरो से निशान बनाकर पिलर निर्मित किये और ज़मीन में नीचे आ जाने से अभी 35-40 वर्ष पूर्व सिरोही एवं जालोर के जिलाधीशों ने नए पिलर उन्ही निशानों पर पुनः खड़े करवाए है जो आज भी दोनों जिलों की सीमाएं मानी जाती है...!

उनके मंदिर पर भक्त दर्शन हेतु आते रहते है... इनका मंदिर मेडा उपरला में मौजूद है....जिसका समस्त क्षेत्रवासी दर्शन लाभ लेते है!

अपने शौर्य से दो राज्यो के बीच शांति स्थापित करने के लिए राजपुरोहित झुंझार दामोदर जी के प्रति हम सब कृतज्ञ है..!


साभार- युग युगीन पाली राज्य का इतिहास-हरिशंकर जी 

स्रोत:- विक्रम सिंह लेटा के वाल से प्राप्त जानकारी