Saturday 6 May 2017

Sant 1008 Shri Nirmal Das Ji Maharaj jeevan parichay


महामंडलेश्वर श्री निर्मलदास जी महाराज

महन्त श्री 1008 निर्मलदासजी महाराज ससंत कबीर आश्रम - बालोतरा जालोर जिले को सांचोर तहसील मुख्यालय में एक ग्राम भादरूणा आया हुआ हैं । यहां वर्तमान में 15 घर राजगुरू परिवार के रहते हैं । यह गांव महन्त श्री की पैतृक जन्मभूमि हैं इसलिए इनके दादाजी मलजी ( सासारिक ) की ग्राम में पारिवारिक स्थिति सामान्य थी इसल ए ये बाडमेर जिले के बालोतरा नगर चले आये । इनकी योग्यता के अनुरूप नगरपालिका में कार्य मिल गया व यहीं बस गये । इनकी धर्म पनि बड़ी धर्मपरायण व सात्विक प्रवृति की थी । 

इनकी ज्येष्ठ पुत्र जेठारामजी के घर जगदीश का जन्म विक्रम संवत 2025 आषाढ दी तेरस को हुआ । इनकी मातु श्री का नाम धापु देवी हैं । ) परिवार वालों ने मात्र 8 वर्ष की उस सत कबीर आश्रम बालोतरा ) ले जाकर स्वेच्छा से भेंट कर दिया ( इनकी दादी श्री ! तुलसादेवी ने समर्थ सत श्री रूधनाथजी महाराज से प्रार्थना की थी कि उनके पुत्र गोपाराम के पुत्र नहीं है । संत श्री के आर्शीवाद फलस्वरूप दो पुत्र भी हुए पर संत श्री ने आशीर्वाद सशर्त दिया था कि एक पुत्र मेरे यहां आश्रम की सेवा में हमेशा क लिए दोगी तो गुरु महाराज तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी करेगे । इसलिए दिये गये वचनों के अनुसार तुलसादेवी ने परिवार के डोलते मन से विचलित न होकर अपनी प्रतिज्ञा को पुरी ) संत कबीर आश्रम परम्परानुसार संत कबीर करवाया पीठ के , महन्तों ने बालक जगदीश को महन्त की गादी पर चादर ओढ़ाकर संतों विधिवत बैठावर नामकरण जगदीश से महन्त श्री निर्मलदासजी रखा क्योंकि महन्त ! श्री रूघनाथदासजी ब्रह्मालीन हो चुके थे ) बाल्यवस्था देखकर परिवार वालों को पुन धरोहर के रूप में शिक्षा दिलाने हेतु सौप दिया । उपरोक्त जानकारी

रिश्तेदारों को नहीं होने से यौवनावस्था तक पहुचते ही सगाई के लिए प्रस्ताव माने लगे । परिवार वालों को मौन देखकर इनकी दादी श्री तुलसादेवी ने पुन : चेतावनी देते हुए कहा - संतों को दिये वचनो से मुकर जाना या झूठला देना अच्छी बात नहीं हैं । इससे परिवार के सर्वनाश की शुरूआत होगी । आगे निर्णय तुम्हें करना हैं । ये बातें युवा जगदीश महंत श्री निर्मलदास ) : भी सुनी । दादी श्री की अपनी प्रतिज्ञा के प्रति निष्ठा देख क्षणिक मानसिक हलचल हई , व मन एकाएक निर्णायक मोड़ पर आकर शान्त हो गया एक दिन परिवार को बिना कहे गुरूकृपा की प्रेरणा से आश्रम चले गये । मन में अभिलाषा थी कि योग्य आचार्य से शिक्षा प्राप्त की जावे । काशी चले आये । यहां कबीर चौरा मठ में रहकर दो वर्षों तक धर्माचायों के सानिध्य में रहकर शिक्षा प्राप्त की बाद में पुष्कर चले आये । यहां पर भी कुछ समय तक रहकर ध्यान योग पर प्रवचन का लाभ लेते हुए वहा से पुन संतों के साथ भ्रमण करते बंगाली बाबा व आम वाले बाबा के सानिध्य में प्रेरणा मिली कि व्यर्थ भटकने से लाभ नही मिलता । यहीं से पुन अपने कबीर आश्रम ( बालोतरा ) लौट आये । यहां आकर समय - समय पर प्रवचन सत्संग करवाते रहे एवं साथ - साथ संत श्री खेतारामजी महाराज के सानिय : आते रहते थे । एक बार संत श्री ( खेतारामजी ) ने महन्त श्री निर्मलदासजी की यौवन अवस्था देख कहा रामजी , साधु जीवन शुरू में कठोर मार्ग लगता हैं परन्तु लक्ष्य की ओर विधिवत् चलोगे तो ईश्वर तुम्हारे हर कार्य में साथ रहकर ( अप्रत्यक्ष रूप से ) ! सहयोग करेगे , सर्वप्रथम घर को सुधारोगे तो समाज स्वत धीरे - धीरे सुधरता जायेगा । ( ईशारा था जिस कुल में तुमने जन्म लिया उसके लिए भी सेवाएं देना ) शिक्षा की तरफ भी ध्यान देने का भी संत श्री खोतारामजी महाराज प्रसंगवश कहते रहते । ये बातें महन्त निर्मलदासजी बड़े ध्यान से सुनते और मन में ऐसा लगा कि अगर सुवसर मिला तो रचनात्मक कार्यों में ( राजपुरोहित समाज में ) अवश्य भाग लूंगा 1 और श्री गणेश किया राजपुरोहित छात्रावास बाड़मेर में अपनी सेवाएँ देकर । उसके बाद इन्द्राणा ग्रामवासियों ने संत श्री खेतारामजी महाराज से ठाकुरजी का आग्रह स्वीकार किया तो ) मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न रिघुनाथजी करवाने ब्रह्मलीन होने पर , यहाँ संत श्री खेतारामजी ने आग्रह को स्वीकार तो किया परन्तु प्राण प्रतिष्ठा में सेत बन श्री निर्मलदासजी ने हर्षोंल्लास के साथ दिया । 

संत श्री खेतारामजी महाराज के समाधि स्मारक गुरू मन्दिर में भी द्रटी एवं के साथ अपनी सेवाएं प्रतिष्ठा गादीपति तक जारी रखी , मोहराई ग्रानवासियों को विशेष अनुरोध पर राजपुरोहित बन्धुओं ( मोहराई ) में चल रहे मत मतान्तर को समाप्त कर प्राण प्रतिष्ठा ( अम्बे माता के मन्दिर में ) सम्पन्न कराई । ग्राम अराबा ( दुदावत ) में ठाकुरजी के मन्दिर की प्रतिष्ठा ग्रामवासियों के सहयोग से धुमधाम से सम्पन्न करवाई । 

सियों का गोलिया में चामुण्डा माता मंदिर,कल्याणपुरा में हनुमानजी का मन्दिर इत्यादि के अतिरिक्त हरिद्वार में समाज भवन हेतु दक्षिण भारत की यात्रा कर भवन सहयोग हेतु श्रद्धालु , भाविक , भामाशाहो , उद्योगपतियों एवं सामान्य वर्ग नौकरी ! करने वालों से भी सहयोग राशि प्राप्त कर सराहनीय सेवाएँ देकर अपनी अह भूमिका अदा की एवं विशाल राजपुरोहित समाज के समक्ष ट्रस्टियों के सहयोग को द्वारा ब्रह्मधाम आसोतरा के गादिपति से उदघाटन करवाकर एक ट्रस्ट का गठन कर अखिल भारतीय राजपुरोहित समाज विकास संस्था को रजिस्टर्ड करवाया जिसका मुख्यालय आसोतरा ब्रह्मधाम व उप कार्यालय हरिद्वार में रखा गया । जिसमें रा वरिष्ठ उपाध्यक्ष महन्त श्री निर्मलदासजी मनोनित किये गये । राजपुरोहित समाज ही नहीं अपितु अन्य समाज में भी धार्मिक कार्यों में अग्रणी रहकर कार्यों को सम्पन्न करवाने में अपनी समय - समय पर अहं भूमिका अदा कर रहे हैं।

                           सभार
                 Rajpurohit Samaj 


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